| 31. | ज्योंही जद्दन धीमी लेकिन क़ड़वी आवाज़ में कहा कि
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| 32. | उसकी नजर ज्योंही मुझ पर पड़ी...
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| 33. | उन्होंने भीतर जाकर ज्योंही मेरा नाम-पता बताया,
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| 34. | ज्योंही इधर से फुरसत मिली, मैं अपने दोस्तों से
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| 35. | ज्योंही वह आ जायंगे, उनका तिलक हो जायगा।
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| 36. | ज्योंही हम लोग जंगल के पास पहुंचे
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| 37. | करने पर भी परशुराम को ज्योंही लक्ष्मण चिढ़ते देखते
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| 38. | एक दिन मैं ज्योंही पहुँची,
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| 39. | मगर ज्योंही दबाव हटा कि फिर वही पाप और कुकर्म।
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| 40. | पर ज्योंही बोल खत्म हुआ कि “धकड़िक फकछक” “धकड़िक फकछक”।
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