यहाँ पत्थरों को तरासकर दो पुरानी इमारतें हैं, इन इमारतों में हल्का नास्ता मिल जाता है, साथ ही बच्चों के मनोरंजन के साधन हैं, जैसे चखी झुला झुलाना आदि! हैकिंग, बाइकिंग, वोटिंग, स्विमिंग, क्रोस कंट्री प्रतियोगिता की व्यवस्था हैं!
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ब्रज की परंपरा में खास बात यह है कि यहां जन्मोत्सव नहीं मनाया जाता बल्कि भक्तों में प्रभु के जन्म लेने का भाव होता है और उसी भाव से नंदोत्सव, लाला को झूला झुलाना, खिलौनों से खिलाने का भाव प्रभु के हर साल जन्म लेने के भाव को प्रदर्शित करता है।
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जब आरती शुरू हुई तो ताशे के आवाज के साथ ही देवी की जय कार हुई और देवी के झूले को झुलाना शुरू हुआ (देवी के झूले को मन्दिर के पुजारी और (यहाँ की भाषा मे कहें तो)महाजन लोग झुलाते है थोडी-थोडी देर के लिए ।)और फ़िर एक घंटे तक आरती होती रही, पहले धूप से फ़िर अलग-अलग तरह के दीपक से आरती की गई ।बाद मे पुष्प चढाये गए ।
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जब आरती शुरू हुई तो ताशे के आवाज के साथ ही देवी की जय कार हुई और देवी के झूले को झुलाना शुरू हुआ (देवी के झूले को मन्दिर के पुजारी और (यहाँ की भाषा मे कहें तो)महाजन लोग झुलाते है थोडी-थोडी देर के लिए ।)और फ़िर एक घंटे तक आरती होती रही, पहले धूप से फ़िर अलग-अलग तरह के दीपक से आरती की गई ।बाद मे पुष्प चढाये गए ।
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पंच कल्याण महोत्सव में कई रूपक बताए जाते हैं, जैसे गर्भ के नाटकीय दृश्य, 16 स्वप्न, तीर्थंकर का जन्मोत्सव, सुमेरु पर्वत पर अभिषेक, तीर्थंकर बालक को पालना झुलाना, तीर्थंकर बालक की बालक्रीड़ा, वैराग्य, दीक्षा संस्कार, तीर्थंकर महामुनि की आहारचर्या, केवल ज्ञान संस्कार, समवशरण, दिव्यध्वनि का गुंजन, मोक्षगमन, नाटकीय वेशभूषा में भगवान के माता-पिता बनाना, सौधर्म इंद्र बनाना, यज्ञ नायक बनाना, धनपति कुबेर बनाना आदि।
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कुछ यादे अब सिर्फ़ गए अप्पू घर की:)-अप्पू घर के एक थे अप्पू राजा गोल गोल घुमा के दिखाते थे तमाशा मेरी गोल्ड थी शान इनकी कोलम्बस झूला थी आन इसकी हर झूला था सब बच्चो को प्यारा बड़ों ने भी खूब यहाँ वक्त गुजारा कभी बरसते पानी में थे खेल न्यारे कभी स्नोफाल के थे दिलकश नजारे बिछड गया हमारा अप्पू हमसे नयना यह देख सबके बरसे अप्पू जल्दी लौट के आना हर बच्चे को फ़िर खूब झूला झुलाना