गांव ही वह नहीं रहा तो वह गांव के क्या रहते? पहाड़पुर जाना जाता था अपने बगीचों, बंसवार और पोखर के कारण-जहां चिड़ियों की चहचहाहट और गायों भैंसों के रंभाने और बैलों की घण्टियों की टनटनाहट से बस्तियां गूंजती रहती थीं लेकिन अब पेड़ कट गये थे, बंसवार साफ हो गयी थी और पोखर धान के खंधों में बंट गयी थी!
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मैं कुछ चीजों पर कविता नहीं लिख सकता फुदकती गिलहरियों कूकती कोयल आंगन में रखे धान का गट्ठर, पुआल जलावन की लकड़ियां भैंस का गोबर चावल की रोटी आम का बगीचा तालाब-पगडंडी लहलहाते खेत खेतों में मजदूर पेड़ों की छाया ढंडी हवा में सूखता पसीना कबड्डी अंजुल भर कर पानी पीना पेड़ के नीचे सोना अंगोछा का मुरैठा घंटी की टनटनाहट, बैलों की और भी ढेर सारी चीजें कई ऐसी भी हैं जिन्हें भूलने से डरता हूं चाहता हूं पर लिख नहीं पाता इनमें हां......