| 31. | इससे बदतर तो कभी हब् शी भी न हों, श्रीमती टर्पिन ने मन ही मन सोचा।
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| 32. | धोने के लिए कोई सुअर हो भी तुम् हारे पास, श्रीमती टर्पिन मन ही मन बोलीं।
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| 33. | यही भर है जो तुम इनको दे पाती होगी, श्रीमती टर्पिन ने मन ही मन कहा।
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| 34. | श्रीमती टर्पिन को भाँपते देर नहीं लगी कि कोई उसे हटने के लिए कहने वाला नहीं है।
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| 35. | “ कोई न कोई अभी मिनट भर में जाने वाला ही होगा ”, श्रीमती टर्पिन ने कहा।
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| 36. | श्रीमती टर्पिन को पता था कि हब् शियों की इस ठकुरसुहाती का वास् तव में कितना अर्थ है।
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| 37. | केवल लड़की की ही जिन् दगी भर नहीं, बल् कि श्रीमती टर्पिन की तमाम जिन् दगी भी।
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| 38. | श्रीमती टर्पिन हमेशा ही लोगों के जूतों पर, बगैर जाहिर हुए, तवज् जों देती रहती थीं।
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| 39. | श् कयों, लड़की! मैं तो तुझे जानती तक नहीं, श्रीमती टर्पिन ने मन ही मन पूछा।
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| 40. | “ नहीं, मेरे पास पहले से ही एक बढ़िया सी घड़ी है ”, श्रीमती टर्पिन ने कहा।
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