खैर साहब, गुसाई जी महाराज तो संत-महात्मा थे लेकिन अपने राम वैसे शरीफ नहीं हैं, हमने जब मेढ़कों का टर्राना देखा-सुना है तब हमारे मन की स्क्रीन पर दो चित्र नाच उठे हैं, एक तो चारों खाने चित्त हाथ-पैर बांधे टर्रे खां मेढ़कराज हमें मेडिकल कालेज के किसी छात्र या छात्रा के चाकू के नीचे आने लगते हैं और दूसरे कभी-कभी मेढ़कों के टर्र-टर्र में हमें हिन्दुस्तानी बाबुओं की अंग्रेजी की बोल वाली लड़ाई का दृश्य नज़र पड़ जाता है।
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बरसात में मेढक टर्राना शुरु कर दतें हैं. जैसे चुनाव पूर्व दिग्विजय.ऐसे में बुद्धिमान प्राणियों को मौन धारण करना चाहिए.फिर अवसर आयेगा अपनी बात कहने का.कोई सुनने वाला भी तो हो इसलिए अवसर देख के अपनी बात कहिये मौके की, यहाँ तो हर तरफ दिग्विजय हैं टर्र टर्र टर्राते बरसाती मेढक से.यहाँ पावस वर्षा ऋतु के लिए आया है और दादुर कहतें हैं मेंढक को. एच आई वी संक्रमित कुछ ख़ास लोगों के खून से ही बनेगा एच आई वी का कारगर टीका.