बढ़ई मामा ठीक कह रहे हैं भाई साहब, मैंने कहा, पफूँकने-तापने के लिए आपने जो सूखा पेड़ गाँव को दिया है, उससे लकड़ी कटवाकर मंगवा लीजिए, तब तक हम लोग टिकठी का इंतजाम करते हैं।
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अगर सौ जुल्म सह लिये तो महाभारत तो अपने घर में खुद ही “ जी ” ली, उसके बाद जीने को जीवन शेष नहीं रहता हैं हां सांसे चलती हैं महज अपना जीवन ख़तम करके टिकठी पर लाल बिंदी लगा कर शादी का जोड़ा पहन कर पति के / पुत्र के कंधे पर चिता तक जाना और समाज में “ सुरक्षित और खुश एंड मोस्ट इम्पोर्टेंट अच्छा होने का प्रमाण पत्र ” पाना जिन्दगी शायद इस कानून के बाद नारी की ना रहे
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फ्लेश बेक से कहानी का अंत तो पहले ही पता हैं फिर भी लोग सुखद अंत बात कर रहे हैं यानी कहीं ना कहीं वो नहीं मान रहे हैं की ये सब होना सही हैं और अगर इतना सब करके एक पुरस्कार मिल गया “ चंद कविता पर ” तो वो महज अपना जीवन ख़तम करके टिकठी पर लाल बिंदी लगा कर शादी का जोड़ा पहन कर पति के / पुत्र के कंधे पर चिता तक जाना और समाज में “ सुरक्षित और खुश एंड मोस्ट इम्पोर्टेंट अच्छा होने का प्रमाण पत्र ” पाने जैसा ही हैं