दृष्टि का यह ‘ पौरुष ' क्या आदमियों को कला का आदर्श आब्जर्वर बनाता है या स्त्री सहृदय वर्णन या निरूपण में जेंडर पार्टनर होने का आत्मविश्वास देता है? क्या भारत की स्त्री-रचनाकार ऐतिहासिक-पौराणिक स्त्री-पात्रों का वैसा कोई नया भाष्य तैयार कर रही हैं जैसा हिल्डा डूलिटिल न हेलेन आफ ट्रॉय का किया? या वह एने सेक्सटन की तरह अपने गर्भाशय का उत्सव मनाने वाली कविता लिख रही हैं: इन सेलीब्रेशन ऑफ माई यूटरस? या आड्रे लोर्ड की तरह वे कोई ‘