लेकिन साध्वी की गिरफ्तारी के बाद जब ‘ हिंदू आतंकवाद ' का राग अलापा जाने लगा और अख़बारों से लेक चैनलों तक में यह ‘ हिंदू आतंकवाद ' मुहावरों की तरह प्रचलन में आने लगा तो अपने लालकृष्ण आडवाणी से लेकर संध परिवार के मुखिया तक को तकलीफ़ हुई और वे सार्वजनिक तौर पर कहने लगे कि किसी धर्म पर आतंकवाद का ठप्पा लगाना ठीक नहीं है।
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वैसे भी पञ्चवर्षीय संवैधानिक चाल से नव स्वाति-नक्षत्र का आना हो या जाना या सीपियों का ही हो सौतिया सोखाना या फिर मोतियों का ही हो मनमोहक मनमाना या बूंदों का ही हो येन-केन-प्रकारेण बिजली गिराना पर हम कंकड़-पत्थरों का क्या? उस विशेष घड़ी में घुड़क-घुड़क कर है एक ठप्पा लगाना फिर बाकी दिन तो वैसे ही एक समाना और अपनी ही उलझी अंतड़ियों में थोड़ा और उलझ कर सौ के बदले हजार तरह से मरते जाना.
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बहुत सुन्दर लेख हरीश भाई,, आतंकवाद को कोई मज़हब नहीं है और ना ही सिर्फ एक कौम आतंकवाद में शामिल है, भारत में मज़हबी / धार्मिक आतंकवाद के अलावा माओवाद नाक्साल्वाद आदि कई आतंकवादी संगठन है तो फिर किसी एक वर्ग पर ठप्पा लगाना जायज़ नहीं! वैसे भी ९९ % लोग ना तो आतंकवादी है और ना ही उसके समर्थक … उम्मीद है आप ने मेरा लेख आतंकवाद का धर्म और रंग (http://rashid.jagranjunction.com/2011/01/10/blog01-2011/) पढ़ा होगा!!