| 31. | लेकिन अल्लाह की आमों ख़ास रहमत से तमस्सुक उदास दिलों को जिला बख़्श कर एक नई हयात अता करता है।
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| 32. | वही तमस्सुक करने वालों के लिये वसीलए अज़मत किरदार है और वही राबेता रखने वालों के लिये ज़रियए निजात है।
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| 33. | यह तमस्सुक तुझे रुधिर एक बूँद भी नही दिलाता, ‘ आध सेर मांस ' यही शब्द स्पष्ट लिखे हैं।
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| 34. | बसन्त: तुम मेरे लिये ऐसे तमस्सुक पर हस्ताक्षर न करने पाओगे इससे तो मैं अपनी दरिद्रावस्था में रहना ही श्रेय समझूँगा।
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| 35. | सूरए आराफ़ की 170 वी आयत में इरशाद होता है कि वह लोग क़ुर्आन से तमस्सुक रखते हैं और नमाज़ क़ाइम करते हैं।
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| 36. | शैलाक्ष: जी हाँ छाती ही, यही तमस्सुक में लिखा है, है न मेरे सुजन न्यायकर्ता, हृदय के समीप ये ही शब्द लिखे हैं।
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| 37. | यह किताबे ख़ुदा से अलग और वह राहे हक़ से मुन्हरिफ़ हैं मगर तुम भी क़ाबिले एतमाद अफ़राद और लाएक़ तमस्सुक “ ारफ़ के पासबान नहीं हो।
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| 38. | उस पर तो ईर्षा के मारे यही धुन सवार है कि बस जो कुछ होता था सो हो चुका अब तमस्सुक के प्रण के अनुसार मेरा विचार हो।
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| 39. | पुरश्री: इस तमस्सुक की गिनती तो टल चुकी और इसके अनुसार विवेकतः जैन को अधिकार है कि सौदागर के हृदय के पास से आध सेर मांस काट ले।
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| 40. | शैलाक्ष: क्या यह तमस्सुक में लिखा है? पुरश्री: नहीं लिखा तो नहीं परन्तु इससे क्या, इतनी भलाई यदि उसके साथ करोगे, तो तुम्हारी ही कानि है।
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