फिर चाहे आप वेद का एक मंत्र भी सही-सही न पढ़ सकें अथवा दर्शनों, पुराणों, स्मृतियों और उपनिषदों की एक सतर का भी मतलब न समझ सकें पर आप ऐसी-ऐसी तर्कना, वितर्कना और कुतर्कनायें करते हैं और ऐसी-ऐसी आलोचनायें, पर्यालोचनायें और समालोचनायें लिखकर इन लोगों के धुर्रे उड़ाते हैं कि आपकी पंडित प्रभा संसार के सारे संस्कृत पंडितों की आंखों में चकाचौंध पैदा कर देती है।