| 31. | कभी तोतली बोली बोलते तो कभी तात ही बोलते।
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| 32. | न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥६-४०॥
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| 33. | जो नहिं होई तात तुम्ह पाहीं ॥
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| 34. | अवाप्यसि ध्रुवं तात शाश्वतं पदमव्ययम् ॥ ३ ५ ॥
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| 35. | आत्मकथ्य-सुनहुँ तात यह अमर कहानी
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| 36. | -हे तात! वही परम वैरागी है ।
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| 37. | मैं जन्मदाता हूँ सभी मुझसे प्रवर्तित तात हैं.
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| 38. | आपु जनी जगमात कियो पति तात सुतासुत
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| 39. | कभी किसान जगत का तात हुआ करता था ।
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| 40. | हे तात! मेरा वचन सत्य है।
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