जीवन की अधेड़ दहलीज पर पहुँच चुके तोंदू स्कूटर मियाँ को न जाने क्यों ऐसा लगता था कि उम्र में उनसे काफी छोटी और कमसिन उनकी बीवी स्कूटी को उनका यह नया आशिक मिजाज पड़ोसी, बाइक मिंया गली में और सड़क पर आते-जाते लाइन मारता रहता है।
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इसलिए तो कोई डा नही अब तक मिला, बिहार में ही बिहार दिवस का सरकारी add नही मिला कुछ तो सरम करो, वर्ना चुल्लू भर पानी में डूब मरो, राजेंद्र तोंदू, चन्दन झा, गुंजन सिन्हा, चमड़ अनिल सिंह आप तो ईमानदारी दिखा के आगे बढ़ने की कोसिस करे वर्ना कोई नेक सलाह नही dega
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हमारे एक मित्र ने एक बहुत ही सुंदर बात शेयर की थी कि गरीब तो पैदल चलते हैं रोज़ी रोटी कमाने के लिए लेकिन अमीर पैदल चलते हैं अपनी रोटी पचाने के लि ए........ बहुत ही सुंदर पोस्ट थी, साथ में एक मेरे जैसे तोंदू की फोटू भी लगी हुई थी, हां, हां, मैं भी नहाने के बाद बिल्कुल ऐसा ही दिखता हूं, कब मीठे पर कंट्रोल करूंगा और कब नियमित टहला करूंगा, देखते हैं।
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साँस अँदर जाने में जैसे अकड़ रही है, ये हैं कि “ हुँह, कीतना फरक पर गिआ? ” बोला कुछ नहीं, कुछ न बोलो तो बीबी की परेशानी का कोई ओर-छोर नहीं मिलता (आप भी यह मंतर आज मुझसे मोफ़त में लेलो), मैं तो अपनी अन्य उपलब्धियों पर झूम रहा था, शहर के बहुत सारे सहतोंदू भाई एक साथ, इस अवसर पर मिले … किबला तोंदू तो मैं भी हूँ, तभी तो इन गणमान्यों को सहतोंदू कह रहा हूँ ।
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चैत मास के अंतिम पखवाड़े की एक भरी दोपहर, अपने घर के बाहर गली में पहले से खडी श्रीमती स्कूटी के बगल में कहीं से आकार स्कूटर जी भी खड़े हो गए थे और इससे पहले कि वे अपनी श्रीमती से कुछ कहते, श्रीमती जी ने ही व्यंग्य-बाण छोड़ते हुए पूछा “ मेरे तोंदू जानेमन, कहाँ से आ रहे हो हांपते हुए? ” स्कूटर जी भी उसी व्यंगात्मक अंदाज में बोले, ” हां, जानेबहार, अब उम्र हो गई है हमारे हांफने की, क्या करें, सब वक्त का तकाजा है।