इसका परिणाम यह हुआ कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन में गांधी की एक न चली और संस्था से त्याग पत्र देना पड़ा किन्तु गांधी का विषैला प्रभाव अब भी बाकी हे और आज भी भारत की सरकार यह फैसला करते हुए झिझकती है कि देश की राष्ट्र भाषा हिन्दी को बनाया जाये या हिन्दुस्तानी को? साधारण बुद्धि वाले लोग भी स्पष्ट रुप से देख सकते है कि राष्ट्र भाषा भी ना जानती हो फिर भी गांधी जी मुसलमानो को खुश करने के लिए यह अनुचित कार्य करने में लगे हुए थे।