शहराती और उच्च मध्यवर्गीय मानसिकता अपने हिसाब से भारत के गलियों, देहातों और उनकी ज़िंदगी को दिखाना चाहती है और इस क्रम में उनकी निजता को गायब कर खुद के द्वारा गढ़ी हुई छवि उन पर थोप देना चाहती है।
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हां, किसी से राय लेना गलत नहीं है पर किसी पर अपनी राय थोप देना गलत है जो अकसर सिर्फ महिलाओं के साथ होता है और यह होता भी रहेगा जब तक महिलाएं अपने लिए आवाज उठाना शुरू नहीं करेंगी.
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वे आधुनिक मानव मूल्यों को, जनतंत्र को, वह चाहे जितना कमजोर ही क्यों न हो, खत्म कर देश पर पूरी तरह (अभी वे इसमें पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाई हैं) फासिस्ट शासन थोप देना चाहती हैं।
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किसी की भी खिल्ली उड़ाना और किसी भी विषय पर विचार किये वगैर अपनी बात थोप देना आदि आदि यहाँ.... बखूबी देखने को मिल रही है...अब तो इस मंच से साहित्यकार कवि लेखक भी जुड़ने से डरने लगे है..
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उनकी राय में एक देश के मुट्ठी-भर लोगों का दूसरे देश के करोड़ों लोगों पर हुकूमत करना देश की भारी मुसीबत है, तिसपर भी उस देश की भाषा को मिटाकर विदेशी भाषा को वहाँ की जनता पर ज़बर्दस्त थोप देना अत्यंत विनाशकारी कार्य है. ”
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‘ धर्म और विज्ञान ' शीर्षक से लिखे लेख मे मैंने ‘ धर्म ' का वैज्ञानिक अर्थ स्पष्ट करने की चेष्टा की है, परंतु सुधी विद्वजन उस पर कोई ध्यान ही नहीं देना चाहते और अपनी गलत धारणाओं को जबरिया सब पर थोप देना चाहते हैं।
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नेहरू, इन्दिरा, वाजपेयी, अआडवाणी या मनमोहन को गाली देना आसान है, उन पर देश की कमजोरियों को थोप देना भी मुश्किल नहीं है, पर हकीकत ये है कि हम सब अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार नहीं हैं वर्ना राजनीति या अफसरशाही हमें इस प्रकार अलग थलग ना कर पाती।
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यह एक समस्या है, और समूचे युग की समस्या है, इसका निदान ढूँढने की बजाय, इससे चिंतित होने की बजाय इस तरह का गैरजिम्मेदारी पूर्ण निष्कर्ष पाठकों पर थोप देना इस किस्म की ओझागिरी ही है कि रोग इसलिए हुआ कि दक्षिण में हवा से पेड़ की एक टहनी टूटी.
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किसी भी देश को बनाने में सबसे महत्वपूर्ण इस समूह की आज भारत में जो हालत है वह कतई उत्साहजनक नहीं कही जा सकती और चूँकि संकेत ही उत्साहजनक नहीं हैं तो निष्कर्ष का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है, लेकिन सभी बुराईयों को युवाओं पर थोप देना उचित नहीं है ।
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किसी भी देश को बनाने में सबसे महत्वपूर्ण इस समूह की आज भारत में जो हालत है वह कतई उत्साहजनक नहीं कही जा सकती और चूँकि संकेत ही उत्साहजनक नहीं हैं तो निष्कर्ष का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है, लेकिन सभी बुराईयों को युवाओं पर थोप देना उचित नहीं है ।