और ज़रूरत पड़ने पर दंत-चिकित्सक एक ओ. प ी. जी एक्स-रे की भी सलाह देता है जिस में सभी दांत एक ही एक्स-रे में देख लिये जाते हैं।
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और हां, बस अपने परिवार के किसी बड़े-बुजुर्ग द्वारा की गई उस दंत-चिकित्सक की तारीफ़ उन के लिये काफी है-इन डिग्रीयों-विग्रियों की बिल्कुल भी परवाह न करने के लिये।
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तो, मेरी पहली सिफारिश है कि हर छः महीने के बाद किसी दंत-चिकित्सक से दांतों का चैक-अप ज़रूर ही करवाया जाये-इस के इलावा कोई रास्ता है ही नहीं है।
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दांत उखड़वाने के बाद खाई जाने वाली बात तो फिर कहीं पीछे छूट गई-ऐसा है कि इस के लिये आप को अपने प्रशिक्षित दंत-चिकित्सक की ही बात माननी होती है।
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मेरा इतन लंबी रामायण पढ़ने के पीछे एक ही मकसद है कि मैं रोज़ाना बहुत से मरीज़ देखता हूं जिन के दांतों की दुर्गति के लिये ये नीम-हकीम दंत-चिकित्सक ही जिम्मेदार होते हैं।
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पता नहीं पिछले दो-तीन से इच्छा हो रही थी कि आप से इस के बारे में थोड़ी चर्चा करूं कि आखिर ये नीम-हकीम दंत-चिकित्सक कैसे आप की सेहत के साथ खिलवाड़ कर सकते हैं......
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तो इस सारी स्टोरी से यही शिक्षा मिलती है कि जब भी मुंह में एक्स्ट्रा दांत दिखें तो अपने दंत-चिकित्सक से मिल कर उस की सलाह अनुसार अकसर इन्हें उखडवा लेने में ही समझदारी है ।
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अगर अभी भी किसी के मन में यही विचार है कि बच्चा 12 वर्ष का होने दें तब ही दंत-चिकित्सक के पास जा कर ब्रेसेज़ का पता कर लेंगे, यह केवल भ्रम मात्र है ।
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तो, मैसेज क्लियर है कि आप कुछ भी इस्तेमाल करिये लेकिन वह आप के दांतो एवं मसूड़ों के लिये नुकसानदायक नहीं होना चाहिये और आप के दंत-चिकित्सक के पास नियमित जा कर अपना चैक-अप करवाते रहिये।
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ऐसे व्यक्ति को तुरंत पान-मसाले, गुटखे, ज़र्दे वाली लत छोड़ कर अपने दंत-चिकित्सक से बिना किसी देरी के मिलना चाहिये क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में भविष्य में मुंह का कैंसर हो जाने की आशंका होती है।