| 31. | दयामय! अपनो विरद विचार |
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| 32. | भजन-हे दयामय आप ही संसार के आधार हो
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| 33. | जो उस दयामय प्रभु की ‘
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| 34. | गीधराज ढिंग राम दयामय सोच विमोचन
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| 35. | किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥ ओम् जय...
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| 36. | ऐसे दयामय भगवान् को मैं अमंगल का मूल समझता था!
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| 37. | किस विध मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति, ॐ जय जगदीश हरे
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| 38. | मैं नित्य तुम्हारे द्वार पर गदापाणि उपस्थित रहूँगा। ' दयामय द्रवित हुए।
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| 39. | ‘समाधिस्थ ', या फिर प्रजावत्सल और दयामय और दोनों दशाओं में फिर
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| 40. | नित गर्व किया करता तुमपे कि दयामय हो शुचि कन्चन से
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