जैनाचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि राजा जिनके पास अनेक प्रकार की धन सम्पदा और सेवा करने वाले दास-दासियों की प्रचुरता होती है किन्तु वे दयाहीन होकर असंयमी जीवन बिताते है, उनकी वेदना को शांत करने के लिए वैध भी समर्थ नहीं होते हैं, रात्रि भोजन के त्याग के नियम से बधा व्यक्ति पुण्य से [...]
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सांई सेती नांही नेह ग्रव करै अति अपनी देह॥ १ ३ साधना-सम्पन्न लोगों की महफिल समाज में शोषण के किसी भी स्तर से न चूकना अपनी जीवन पद्धति समझी जाती थी इस सुविधाभोगी लोगों की शोषण प्रधान नियति का खुलासा वे उपरोक्त पंक्ति में करते हैं कि जिन दयाहीन लोगों को अपनी देह पर बड़ा गर्व है यह मिथ्या गर्व ही उन्मादों को जन्म देता है और शक्ति का प्रभाव ही शोषण की प्रेरणा देता है।