उस समय जीव पीड़ित भी होता है | उस समय जीव प्रतिशोध की अग्नि में भी जल रहा होता है | उस समय वह जीव भी क्रूर हो जाता है | कहने का अर्थ यह है कि उस समय वे समस्त नकारात्मक भाव उस जीव के मन में आते हैं जिस समय वह दर्दनाक मृत्यु को पा रहा है | और इन सब भावों को भी मांसाहारी व्यक्ति उस जीव के साथ खा जाता है | सुनने में यह थोडा अजीब है किन्तु है एकदम वैज्ञानिक सत्य |
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गर्मी में जब स्कूल की छुट्टिया हुआ करती थी तब मामाजी के घर गाँव जाने पर फर्गुदिया से अक्सर मेरी मुलाकात हुआ करती थी, ऐसे ही एक बार जब मैं गाँव गयी तो फर्गुदिया के साथ घटी घटना और उस घटना से हुई उसकी दर्दनाक मृत्यु के बारे में सुना तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी, उस समय मेरी भी उम्र पंद्रह, सोलह वर्ष की ही थी, तब से लेकर आज तक मैं फर्गुदिया और उसके साथ घटी घटना को बिलकुल भी नहीं भूली हूँ.