अपने समय के बारे में टिप्पणी करते हुए अकबर के जीवनी लेखक अबुल फजल ने अपनी पुस्तक अकबरनामा में लिखा है कि जब तकलीद की हवा चलती है तब दानिशमंदी की परत धुँधली हो जाती है अर्थात जब रूढ़िवाद की आंधी चलती है तब आँखों को सच नजर नहीं आता।
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जैसे ख्वाब दिखाए तूने वैसी अब ताबीरें दे मेरी आँखों में बस जाए ऐसी कुछ तस्वीरें दे और मुझे कुछ दे या ना दे मौला तेरी मर्जी है दानिशमंदी की दौलत दे हिम्मत की जागीरें दे राम भरोसे मुल्क हमारा जो होगा अच्छा होगा नेता से उम्मीद यही बस अच्छी सी तक़रीरें दे जब
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जैसे ख्वाब दिखाए तूने वैसी अब ताबीरें दे मेरी आँखों में बस जाए ऐसी कुछ तस्वीरें दे और मुझे कुछ दे या ना दे मौला तेरी मर्जी है दानिशमंदी की दौलत दे हिम्मत की जागीरें दे राम भरोसे मुल्क हमारा जो होगा अच्छा होगा नेता से उम्मीद यही बस अच्छी सी तक़रीरें दे जब...
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चालाकी से उसका सपना तोड़ दिया मैंनें इन हाथों का कासा तोड़ दिया पागल था मैं पीली रंगत वालों का सरसों जब फूली तो पत्ता तोड़ दिया पहले सारे रंग बिरंगे फूल रखे फिर उसने गुलदान ही मेरा तोड़ दिया दानिशमंदी या मेरी नादानी थी अक्स बचाने में आईना तोड़ दिया पलकों की कालीन बनाई …
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नतीजा-तुर्की पूरी इस् लामी दुनिया में अकेला ऐसा मुल् क है जहां साइंसदानी और दुनियावी दानिशमंदी में बेहतरीन काम हो रहा है, जहां की औरतें पूरी तरह बिना किसी रोक टोक या पर्दे जैसी घटिया पाबंदी के पूरी आज़ादी से हर फील् ड में मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं...
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ऐसी मुश्किल तो प्यारे पग पग पर आएगी जो दुनियादारी न सिखलाये, क्या दुनिया कहलाएगी जुगनू के मुँह से सूरज की अब बाते सुनते हैं कहने वाले कहते रहते,भला कब सुनते हैं अपनी दानिशमंदी का भी तो देना हैं इम्तिहान चाहे बेशक क्यों न हो जाए चमन शमशान तेरी मेहनत पर उनकी भी मोहर लग जायेगी जो दुनियादारी न सिखलाये, क्या दुनिया कहलाएगी सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा