खाने के अतिरिक्त नमक के उपयोग बहुत बड़ी मात्रा में दाहक सोडा, क्लोरीन और सोडियम धातु के निर्माण तथा अन्य उद्योगों में होता है।
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रूई के सूतों या वस्त्रों को जब दाहक सोडा (कॉस्टिक सोडा) के साथ उपचारित किया जाता है, तब उनमें उत्कृष्ट कोटि की, स्थायी रेशम सी चमक आ जाती है।
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इनको निकालने के लिए माल का दाहक सोडा ऐश, साबुन आदि के साथ आठ दस घंटे तक भट्ठी (कियर, kier) में दबाव देकर उबाला जाता है और धोकर अम्लीय बनाने तथा रसायन (chemicaling) की क्रियाएँ की जाती हैं।
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यह रबर लगा हुआ कपड़ा होता है, जो पानी से नहीं भीगता और जिसपर दाहक सोडा जैसे खारे पदार्थों का प्रभाव भी कम पड़ता है, जबकि कंबल बैक ग्रे से रक्षित रहने पर भी खराब हो जाता और कम दिन चलता है।
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यह रबर लगा हुआ कपड़ा होता है, जो पानी से नहीं भीगता और जिसपर दाहक सोडा जैसे खारे पदार्थों का प्रभाव भी कम पड़ता है, जबकि कंबल बैक ग्रे से रक्षित रहने पर भी खराब हो जाता और कम दिन चलता है।
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इनके अतिरिक्त कुछ और पद्धतियाँ भी हैं, जो कार्यविशेष के लिए ही निश्चित हैं और जिनका चलन उद्योग में सीमित है, जैसे उभाड़ प्रथा (Raised style) जो रसायनकों के अवक्षेपन द्वारा होती है, क्रीपान प्रथा (Crepon or crimp style) जो दाहक सोडा के मर्सरीकरण शक्ति के सांद्रण से प्राप्त होती है और धारी की छपाई (printing of linings) जो ब्रोकेड ऐसे कपड़ों के लिए भी प्रचलित है, परंतु अधिक नहीं।