| 31. | जो चीजें हम क्रय नहीं कर सकते उनके प्रति मन में इच्छाएँ करना ही अपने जीवन को दुःखमय बनाना है।
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| 32. | आत्मा की नश्वरता के अतिरिक्त बुद्ध ने क्षणिकवाद और दुःखवाद मेंविश्वास करते हुए सम्पूर्ण संसार को दुःखमय एवं प्रत्येक क्षणपरिवर्तनशील माना.
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| 33. | मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं, उसी प्रकार उसको भी अपना राज्य पुत्र बिना दुःखमय प्रतीत होता था ।
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| 34. | ओडेसी का विषय ही है ‘ ओडेसियस का दुःखमय भ्रमण ' ।अतः यह 10 वर्षों का भ्रमण-वृत्तान्त ही उसका उद्देश्य है।
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| 35. | अतः उस असीम विश् वव्यक् तित्व की प्राप् ति के लिए इस कारास्वरूप दुःखमय क्षुद्र व्यक् तित्व का अंत होना ही चाहिए।
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| 36. | जीवन के दुःखमय दर्शन की न उसने खोज की है और न उस दुःख से मुक्ति की कामना उसकी जानी पहचानी हैं।
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| 37. | जिस प्रकार दु: खी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं, उसी प्रकार उसको भी अपना राज्य पुत्र बिना दुःखमय प्रतीत होता था ।
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| 38. | कुछ लोग अपने-अपने क्रिया-कलापों से मुक्ति पा जाते हैं और अन्य दुःखमय जीवन व्यतीत करते हुए मानसिक संत्रास के द्गिाकार हो जाते हैं।
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| 39. | जो लोग निंदनीय कार्य करते हैं, वे जगत में निन्दा के पात्र होते हैं और अपने आगामी जीवन को भी दुःखमय बनाते हैं।
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| 40. | आपका पिता इतना नालायक नहीं है, जितना कि आप “ दुनियाँ दुःखमय है ” यह शब्द कहकर उसकी प्रतिष्ठा पर लाँछान लगाते हैं।
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