जयपुर के बम धमाकों से उत्पन्न दुःसह स्थितियों से सारा देश और समुची दुनिया अवाक् है कि कब यह दौर थमेगा ।
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जैसे वनाग्नि से वृक्ष जलाया जाता है, वैसे ही युवावस्था में प्रियतमा के वियोग से उत्पन्न दुःसह शोकाग्नि से जीव जलाया जाता है।।
33.
मार्कण्डेय ऋषि के चले जाने के बाद दुःसह ने अपनी पत्नी दरिद्रा से कहा-ज्येष्ठे! तुम इस पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ जाओ।
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ऐसा विचार कर सरस्वती हृदय में हर्षित होकर दशरथजी की पुरी अयोध्या में आईं, मानो दुःसह दुःख देने वाली कोई ग्रहदशा आई हो॥ 4 ॥
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फिर विनती करके उन्होंने अपने दुःसह दुःख सुनाए और (दुःखों के नाश का आश्वासन पाकर) हर्षित होकर अपने-अपने स्थानों को चले गए॥ 2 ॥
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जिसे सुनकर रघुनाथजी ने दुःसह दुःख पाया और अपने प्रति उनके स्नेह को उनके मरने का कारण विचारकर धीरधुरन्धर श्री रामचन्द्रजी अत्यन्त व्याकुल हो गए॥ 2 ॥
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मेरी ही वफ़ादारी कितनी हैअपने वर्ग के प्रति? आज मुझे तीसरे दर्जे में चढ़ने की कल्पना ही दुःसह लग रहीहै, पर मैंने ही तो यह आग लगायी थी कि वर्ग-भेद उठ जाए.
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वन में सुमति को दुःसह कष्ट होने लगे, शरीर की पीड़ा से उसे बार − बार मूर्च्छा आने लगी, उसके बालक को तो पहले ही काल ने कवलित कर लिया।
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इस शूद्र को 1000 बार जन्म अवश्य ही लेना पड़ेगा किन्तु जन्मने और मरने में जो दुःसह दुःख होता है वह इसे नहीं होगा और किसी भी जन्म में इसका ज्ञान नहीं मिटेगा।
40.
इस शूद्र को 1000 बार जन्म अवश्य ही लेना पड़ेगा किन्तु जन्मने और मरने में जो दुःसह दुःख होता है वह इसे नहीं होगा और किसी भी जन्म में इसका ज्ञान नहीं मिटेगा।