हिंदी में भावार्थ-डंडे से पीटकर किसी पीड़ा देना, मदिरादि दुर्गंधित पदार्थों को सूंघना, कुटिलता करना तथा पुरुष से मैथुन करना जैसे पाप मनुष्य जाति के लिये भयंकर हैं।
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यहीं पर एक दुर्गंधित ' सन्देश ' के जबाब में रचना जी के साथ खड़े अनगिनत लोग मिले, स्त्री पुरुष सभी, यह एक खुशी ही नहीं है बल्कि सही ताकत का ऐलान भी है.
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बहती हुई विषाक्त वायु से दुर्गंधित है कोना-कोना, चतुर नहीं है केवट कोई जो डूब रहा कोना बचाए दरवाजे पर दस्यु खड़े हैं पिछवाड़े में आग लगी है, अपने कुल की मर्यादा कैसे कोई इंसान बचाएं ……
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पर अब ' अपानवायु ' को भी ' भड़ास ' मनवाने पर उतारू लोगों से क्या संवाद? सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा की गयी लीद उस स्नेह मिलन को दुर्गंधित तो कर रही है पर उनके ' पेशे ' की मजबूरियां समझें और निर्विकार रहें.
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अपच भोजन पेट पर भार जेसा ही होता हेक्योकि जो शक्ति पेदा न कर सके वह ओर किसी काम का नहीं, वह तो सड़ कर दुर्गंधित गेस, पेड़ा करता हे ओर विषाणुओ / जीवाणुओं / ओर परजीवियों [वोर्म्स] को पनपने का सुरक्षित स्थान बन जाता हे।
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इसका एक और धारदार प्रमाण उन्हीं की एक और कहानी-और क्या, ' मूतरी '-में मिलता है, जहाँ कथानायक हिन्दू-मुसलमानों के बीच वाग्युद्ध अर्थात माँ-बहन का उपसंहार एक तटस्थ क़िस्म के जुमले में हुआ देख कर उस दुर्गंधित माहौल में खुशबू के अहसास से तर होकर बाहर निकलता है।
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मैं जिस शहर में रहता हूँ वहां आधा दर्जन राष्ट्रीय एक दर्जन आंचलिक और सेकड़ों नगरीय समाचार पत्र, टीवी चेनल्स और सूचना संसाधन उपलब्ध हैं, देश के महानगरों से प्रदेश के राजधानियों से देश की राजधानी से निकलने वाले अखवारों, टीवी चेनलों और रेडिओ संचार माध्यमों में भी वो सब कुछ है जो या तो सबको पहले से ही मालूम है [इन्टरनेट, मोबाइल एस एम् एस इत्यादि से] या जो जनता के लिए नितांत अनचाहे परोसा जाने वाला पत्नोंमुखी पूंजीवादी वासी दुर्गंधित कचरा हो।
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न ही कोई मांस अपवित्र है और न ही कोई पुष्प पवित्र l जो श्वेत-सुमनोहर पुष्पहार माँ सरस्वती को अर्पण किया जाता है, वह सूख-गलकर दुर्गंधित हो जाने पर उसे तुरंत विसर्जित कर देते हैं l उसी माँ के पूजन स्थल में जहाँ किसी भी प्रकार के मांस का लाना निषिद्ध होता है, उन्हीं के श्री चरणों की प्रेरणा से, उनके सम्मुख, उन वाद्य यंत्रों को साधा जाता है जिनमें से कई यन्त्र पशु के चर्म से ही बने हैं l केवल समय का अंतर है...