दूज का चाँद, चौदहवीं का चाँद, शरद-पूर्णिमा का चन्द्रमा चतुर्थी का चन्द्र और ईद का चाँद! हर चन्द्रमा की अपनी एक अलग मोहक, मधुर कहानी है।
32.
दूज का चाँद तो फिर गायब हो जायगा, अमावस्या को बिल्कुल नहीं दिखेगा लेकिन परमात्मारूपी चाँद एक बार फिर दिख गया तो फिर कभी अदृश्य नहीं होगा।
33.
दूज का चाँद, चौदहवीं का चाँद, शरद-पूर्णिमा का चन्द्रमचतुर्थी का चन्द्र और ईद का चाँद! हर चन्द्रमा की अपनी एक अलग मोहक, मधुर कहानी है।
34.
सोमवार को छोटी छोटी बाते, दूज का चाँद, कैदी, एक गाँव की कहानी फिल्मो के गीतों के साथ सुरैया का शमा फिल्म का यह गीत भी शामिल था-
35.
जाड़े की सांझ: एन पोर्टर (अनुवाद: मनोज पटेल) जाड़े की किसी साफ़ सांझ दूज का चाँद और बलूत के ठूँठ पर लगा गिलहरी का गोल घोंसला बराबर के ग्रह होते हैं.
36.
बैठा है दूज का चाँद आसमान पर सुबह-सुबह घुटने मोड कर एक छुई मुई प्रेमिका की तरह शायद वो कर रह है इंतजार किसी पूर्णिमा के आने का परन्तु वो कितना पूर्ण लगता है
37.
की एक कविता... जाड़े की सांझ: एन पोर्टर (अनुवाद: मनोज पटेल) जाड़े की किसी साफ़ सांझ दूज का चाँद और बलूत के ठूँठ पर लगा गिलहरी का गोल घोंसला बराबर के ग्रह होते हैं.
38.
चन्द्र कलाओं-ईद का चाँद, दूज का चाँद,पूर्णिमा का पूर्ण चन्द्र,अर्द्ध चन्द्रऔर चन्द्र हीन अमावस्या का ज़िक्र साहित्य और कलाओं तक ही महदूद नहीं हैं-पूर्णिमा की रात का आत्म ह्त्या के उद्दीपक के तौर पर भी ज़िक्र किया जाता रहा है ।
39.
1966 में हास्य अभिनेता आग़ा के लिए मन्ना डे नें रोशन के संगीत निर्देशन में फिल्म-“ दूज का चाँद ” में ठुमरी (भैरवी) अंग में हास्य गीत-“ फूल गेंदवा ना मारो, लगत करेजवा में चो ट.... ” गाया।
40.
देर रात हो गयी तो जुगनू की ठंढी हलकी हरी चमक मद्धम पड़ने लगी...लड़की को यकीन नहीं होता की उसकी हथेलियों से जुगनू गायब नहीं हो गया है...उँगलियों के बीच हलकी फांक करके देखती...रात के अँधेरे में एक दूज का चाँद खिल जाता उसकी उँगलियों के बीच.