केंचुए की देहगुहा के तरल विषाक्त प्रभाव से जुड़पित्ती, टाइफायड या ज्वर, मुख पर सूजन, नेत्रशोथ, साँस फूलना आदि होते हैं।
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केंचुए की देहगुहा के तरल विषाक्त प्रभाव से जुड़पित्ती, टाइफायड या ज्वर, मुख पर सूजन, नेत्रशोथ, साँस फूलना आदि होते हैं।
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यह लंबे, बेलनाकर, खंडहीन शरीरवाले प्राणी हैं, जिनमें नर और मादा अलग होते हैं, आहारनाल पूर्ण होती है और देहगुहा वर्तमान होती है।
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यह लंबे, बेलनाकर, खंडहीन शरीरवाले प्राणी हैं, जिनमें नर और मादा अलग होते हैं, आहारनाल पूर्ण होती है और देहगुहा वर्तमान होती है।
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सभी देहगुहावाले प्राणी स्वतंत्र रूप से आंतर गुहावाले प्राणियों से उत्पन्न हुए हैं तथा देहगुहा का तीन युग्मों में विभाजन इनका प्रमुख गुण है।
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कुछ त्रिस्तरी जीव ऐसे भी हैं जिनमें देहगुहा नहीं रहती और उसके स्थान पर एक विशेष तंतु भरा रहता है जिसे मूलोति (पारेंकिमा) कहते हैं।
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कुछ लक्षणों के आधार पर इनका संबंध आंतरगुहियों से स्पष्ट है, जैसे देहगुहा का अभाव, संमिति की प्रकृति, श्लेषाभीय मध्यश्लेष, विस्तृत नाड़ीजाल, शाखित पाचक गुहा इत्यादि।
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त्रिस्तरी प्राणियों की विशेषता यह है कि मध्यस्तर से बाहरी आवरण और पाचकनाल के बीच एक लसिका से भरा विवर बनता है, जिसको देहगुहा (सिलोम अथवा बाडी कैबिटी)
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भ्रूणपट्ट (embryonic disc), उल्व (amnion), देहगुहा (coelom) तथा पीतक (yolk) थैली में भरे द्रव्य से पोषण लेता है।
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इस कारण त्रिस्तरी को फिर दो भागों में बाँटा जाता है-एक तो सदेहगुहा (सीलोमाटा), जिनमें देहगुहा वर्तमान रहती है, और दूसरी अदेहगुहा, जिनमें देहगुहा की जगह केवल मूलोति रहता है।