हे देवी! इस तत्व को ध्यान से सुनो | मनुष्य जब विरक्त होता है तभी वह अधिकारी कहलाता है, ऐसा उपनिषद कहते हैं | अर्थात् दैव योग से गुरु प्राप्त होने की बात अलग है और विचार से गुरु चुनने की बात अलग है | (175)
32.
आज गुरू की कमी नहीं है, तथा शिष्य भी बहुत मिल जाते है लेकिन जो सिद्ध गुरू है वहाँ निम्न स्तरीय लोग पहुँच ही नहीं पाते, अगर दैव योग से पहुँच जाये तो उन्हें समझ नहीं पाते, और दैव कृपा से थोड़ा समझ में आया भी
33.
भूतकाल में यदि हमने अच्छे विचारों, भावों और कर्मों का संग किया हो तो सत्संग हमे कभी न कभी दैव योग से मिल ही जाता है,और यदि वर्तमान में ही अच्छे विचारों, भावों और कर्मों का संग करें तो तत्काल राम कृपा हो जाती है और सत्संग सहज रूप से सदा उपलब्ध रहता है.
34.
होना तो यह चाहिए कि हम भले आदमी को संसद में भेजें और यदि हम ऐसा न कर सकें और दैव योग से ऐसा हो रहा हो तो उस भले आदमी को वहाँ बने रहने में अपनी पूरी ताकत लगाएँ, उसे पूरी मदद करें-वह सारी मदद ताकि वह ‘ जरूरतमन्द ' हो कर स्खलित न हो और ‘ भला आदमी ' बना रहे।
35.
फिर आप किसी न किसी खेत की मूली हो कर कैसे जा पाएंगे? हाँ, ऐन उसी वक्त किसी दैव योग से मोटर साइकिल पर मंदिर के लिए निकलने वाले पुजारी जी या फिर छुट्टी मना कर अलसुबह स्टेशन से ऑटो मे लौट रहे होस्टेलर्स गुजरें और हैड लाइट से बिदक कर वे आपको जगह दे दें तो आपका सौभाग्य! वरना जो रास्ते बचते हैं वे हैं: या तो आप डिवाइडर फांद कर रोंग साइड पकड़ लें या फिर यू टर्न ले कर वापस मेन गेट तक पहुँचें और दुबारा अपनी सैर शुरू करें।