अगर मनुष्य चाहे तो स्वयं को योगसाधना तथा अध्यात्मिक ग्रंथों के अध्ययन से मानसिक रूप से दृढ़ होने के साथ ही दैहिक रूप से बलवान भी बना सकता है।
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उसमें केवल अध्यात्मिक शांति के लिये तत्वज्ञान ही नहीं है बल्कि दैहिक रूप से मनुष्य अपना जीवन स्वस्थ और प्रसन्नचित होकर गुजारे इसके लिये विज्ञान रहस्य भी उसमें शामिल है।
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उसमें केवल अध्यात्मिक शांति के लिये तत्वज्ञान ही नहीं है बल्कि दैहिक रूप से मनुष्य अपना जीवन स्वस्थ और प्रसन्नचित होकर गुजारे इसके लिये विज्ञान रहस्य भी उसमें शामिल है।
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134...... कभी कभी जिस लड़की का दैहिक आकर्षण आपको खींचता है वो अपने दैहिक रूप में बहुत साधारण मिलती है ओर साधारण दिखने वाली लड़की दैहिक रूप से अद्भुत.....
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दरअसल इन कहानियों की रचना के पीछे उद्देश्य यही है कि मनुष्य दैहिक रूप से अनेक कर्म करता है पर आत्मिक रूप से उनमें लिप्त नहीं होता तो वह योगी हो जाता है।
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नपुंसक वो नहीं जो दैहिक रूप से हो हो नपुंसक वो है जो “..............................? ” सब जानतें हैं हाँ वही जो कमज़ोर के सामने ताकत दिखाए बलवान के सामने दुम हिलाए.........................
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वह उन पर अच्छी या बुरी चर्चा करता है पर उसके हृदय में आज भी पौराणिक महानायक स्थापित हैं जो दैहिक रूप से यहां भले ही मौजूद न हों पर इंसानों के दिल में उनके लिये जगह है।
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स्पष्टतः धर्म प्रचार ऐसे लोग करते हैं जिनका आचरण दृश्यव्य नहीं है या वह उसे दिखाना नहीं चाहते क्योंकि वह स्वयं किसी सांसरिक क्रिया में दैहिक रूप से लिप्त नहीं होते पर उनका मन उसमें बिंधा रहता है।
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वह उन पर अच्छी या बुरी चर्चा करता है पर उसके हृदय में आज भी पौराणिक महानायक स्थापित हैं जो दैहिक रूप से यहां भले ही मौजूद न हों पर इंसानों के दिल में उनके लिये जगह है।
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यद्यपि दैहिक रूप से ये बीजाणुओं के समान आचरण करती हैं, तथापि उनसे भिन्न होती हैं और इनको चिपिटो-बीजाणु या खमीर (यीस्ट) में कुड्म (bud) या कुड्मलाणु (gemma) नाम दिया जाता है।