-आर्थिक स्वतंत्रता-दैहिक स्वतंत्रता-निर्णय लेने की स्वतंत्रता * घरेलू हिंसा के लिए मुख्य रूप से महिलाओं की खामोशी या सहनशक्ति जिम्मेदार है, क्या आप इससे सहमत हैं?
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Sushant Singhal said... संवादघर (www।samwaadghar।blogspot।com) में नारी की दैहिक स्वतंत्रता व सामाजिक उपयोगिता पर जो बहस चल रही है वह रोचक तो है ही, बहुत महत्वपूर्ण भी है ।
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-आर्थिक स्वतंत्रता-दैहिक स्वतंत्रता-निर्णय लेने की स्वतंत्रता मेरे विचार से आर्थिक स्वतंत्रता, दैहिक स्वतंत्रता,निर्णय लेने की स्वतंत्रता-य ह तीनों मिलकर ही महिलाओं को समुचित स्वतंत्रता दे सकते हैं।
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-आर्थिक स्वतंत्रता-दैहिक स्वतंत्रता-निर्णय लेने की स्वतंत्रता मेरे विचार से आर्थिक स्वतंत्रता, दैहिक स्वतंत्रता,निर्णय लेने की स्वतंत्रता-य ह तीनों मिलकर ही महिलाओं को समुचित स्वतंत्रता दे सकते हैं।
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नारी अस्मिता और स्वतंत्रता से जुड़ा अहम प्रश्न है दैहिक स्वतंत्रता का, जिसमें निरंतर एक ही सवाल उठता है कि स्त्री अपने चाहने पर किसी पुरूष से संबंध बना पाती है या नहीं।
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इसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 45 (बालकों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबन्ध) को अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) के साथ देखा जाना चाहिए।
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जिसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 45 (बालकों के लिए नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबन्ध) को अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) के साथ देखा जाना चाहिए।
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इस देश में युवा आजकल किशोरावस्था से ही संविधान प्रदत्त कुछ स्वतंत्रताओं जैसे अभिव्यक्ति एवं दैहिक स्वतंत्रता आदि का बड़ी जिंदादिली से उपभोग कर भारत के संविधान निर्माताओं के प्रति सच्चा सम्मान एवं संविधान के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने में सक्रिय हो चला है।
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इसी तरह, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण संबंधी मौलिक अधिकार की व्याख्या करते हुए उच्चतम न्यायालय ने इसके दायरे में गरिमापूर्ण जीवन, निजी एकान्त जीवन, स्वच्छ वातावरण और जीविका के अधिकार को भी शामिल किया है।
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स्वतंत्रता के अधिकार निम्नलिखित प्रकार के होते है-• वाक् स्वातंत्र्य विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण (अनुच्छेद 19) • अपराधों के लिए दोष सिद्ध के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद 20) • प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21) • कुछ दशाओं में गिरफ़्तारी और निरोध से संरक्षण (अनुच्छेद 22)