यह तराना सुनने के लिये आपको १ ४ मिनिट खर्च करने होंगे, क्यों कि बीच में द्रुत लय में सुन्दर आलाप भी है ;
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उधर बुजुर्ग का ' हाउ-हाउ' अब द्रुत लय छोड़कर विलम्बित की तरफ़ आने लगा और बाद में बड़े ही ठस किस्म की ताल में अटक गया।
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विलम्बित और द्रुत लय में निबध्द ये बंदिश (पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे) श्रोता को एक अलौकिक स्वर यात्रा करवाती है.
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उधर बुजुर्ग का ' हाउ-हाउ ' अब द्रुत लय छोड़कर विलम्बित की तरफ़ आने लगा और बाद में बड़े ही ठस किस्म की ताल में अटक गया।
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इनमें एक राग है, जो आलाप से लेकर ख़याल की विलम्बित, मध् य और द्रुत लय के साथ तराने तक का विस् तार पाता है।
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' और उसके बाद द्रुत लय तीनताल में निबद्ध पण्डित ज्ञानप्रकाश घोष की रचना-‘ घन छाए गगन अति घोर घो र... ' की रसानुभूति आप भी कीजिए।
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किसी ने कहा था! टकराती है आंखें अचानक दोनों उस्तादों की भरी हुई कूट भाषा से भरने लगती है चौकड़ी कलावती द्रुत लय तीन ताल में 16 मात्राओं के साथ
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लौटने को जी नहीं चाहेगा. विलम्बित से शुरू होकर मध्य और द्रुत लय पर आती आती ये बंदिश कितना कुछ कह जा रही है सुनिये तो..... ये रतजगा आपको सुरीला ही लगेगा....शर्तिया.
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इस बढ़त में आगे चलकर सरगम, तानें, बोल-तानें, जिनमें मेरुखण्डी अंग भी है, और आख़िर में मध्यलय या द्रुत लय, छोटा ख़याल या रुबाएदार तराना पेश किया।
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इस बढ़त में आगे चलकर सरगम, तानें, बोल-तानें, जिनमें मेरुखण्डी अंग भी है, और आख़िर में मध्यलय या द्रुत लय, छोटा ख़याल या रुबाएदार तराना पेश किया।