| 31. | द्वित्व, संप्रसारण, संधि, स्वर, आगम, लोप, दीर्घ आदि के विधायक सूत्र छठे अध्याय में आए हैं।
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| 32. | द्वित्व का प्रयोग बहुबचन बनाने, जोर देने, या नये शब्द गढ़ने के लिये किया जाता है।
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| 33. | द्वित्व, संप्रसारण, संधि, स्वर, आगम, लोप, दीर्घ आदि के विधायक सूत्र छठे अध्याय में आए हैं।
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| 34. | किन्तु उक्त शब्दों में यह बात नहीं है, अतएव उनमें द्वित्व की आवश्यकता नहीं ज्ञात होती।
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| 35. | संक्षेपत: द्वित्व आदि की उत्पत्ति (द्वित्वोदय प्रक्रिया) वैशेषिकों के अनुसार इस प्रकार है-
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| 36. | 2. 6.1.4 पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में (दुबारा) आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा।
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| 37. | फिर तो द्वित्व या द्वैत-दो-होने से द्वैतवाद ही होगा, न कि अद्वैतवाद।
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| 38. | 2. 6.1.4 पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में (दुबारा) आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा।
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| 39. | कथन तो यह है कि उक्त द्वित्व वर्ण और पंचम वर्ण के प्रयोग में जो परिवर्तन हो रहा है,
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| 40. | जब कोई वक्ता अधिक जोर देना या अलंकारिक भाषा का प्रयोग करना चाहता है तो वह द्वित्व का उपयोग करता है।
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