मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त-जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही-बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया।
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मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त-जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही-बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया।
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मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त-जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही-बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया।
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चतुर्भुज रूप में वे बैकुंठ में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा और तुलसी के साथ वास करते हैं परन्तु द्विभुज रूप में वे गौलोक धाम में राधाजी के साथ वास करते हैं।
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वे चार मिख वाले न होकर भी लोकस्रष्टा ब्रह्मा हैं चतुर्भुज न होकर भी द्विभुज दूसरे विष्णु हैं ५ मुख तथा १ ५ नेत्र न होने पर भी साक्षात भगवान शंकर हैं-
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विश्वसारतंत्र में लिखा है कि-मस्तक में जो शुभ्र-वर्ण का कमल है, योगी प्रभात-काल में उस पदम् में गुरू का ध्यान करते है कि वह शांत, त्रिनेत्र, द्विभुज है और वह वर एवं अभय मुद्रा धारण किये हुये
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विश्वसारतंत्र में लिखा है कि-मस्तक में जो शुभ्र-वर्ण का कमल है, योगी प्रभात-काल में उस पदम् में गुरू का ध्यान करते है कि वह शांत, त्रिनेत्र, द्विभुज है और वह वर एवं अभय मुद्रा धारण किये हुये है।
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षण्मुख, द्विभुज, शक्तिघर, मयूरासीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत में बहुत प्रचलित हैं ये ब्रह्मपुत्री देवसेना-षष्टी देवी के पति होने के कारण सन्तान प्राप्ति की कामना से तो पूजे ही जाते हैं, इनको नैष्ठिक रूप से आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय भी है।
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इसी तरह ईश्वरके विषयमें कई कहते हैं कि यह सगुण है, कई कहते हैं कि यह निर्गुण है, कई कहते हैं कि यह साकार है, कई कहते हैं कि यह निराकार है कई कहते हैं कि यह द्विभुज है, कई कहते हैं कि यह चतुर्भुज है, कई कहते हैं कि यह सहस्रभुज है, कई कहते हैं कि यह विराट् रूप है ।