सेकुलरों और धर्मभ्रष्ट अवं पथभ्रष्ट लोगों कि नौटंकियों पर ना जाएँ और ” गर्व से कहो, हम हिन्दू हैं ” ।
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वे साफ कहते हैं-मुझे धर्म प्यारा है, इसलिए मुझे पहला दुख तो यह है कि हिंदुस्तान धर्मभ्रष्ट होता जा रहा है।
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उसने ऐसा क्यों किया? प्रसाद ग्रहण करने मात्र से वह धर्मभ्रष्ट तो होने वाला नहीं था! इसी तरह की छोटी-छोटी बातें हैं।
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घोर धार्मिक प्रवृत्ति के सेठ जी पर पता नहीं कितने जन्मों का वांछित संचित था कि उनको पत्नी, पुत्र सभी घोर धर्मभ्रष्ट मिले.
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उस धर्मभ्रष्ट, महत्त्वाकाक्षी, रावण जैसे मरख ने अपना अंधा दमन चलाया और कई हिन्दुओं की, सिन्धियों को धर्म परिवर्तन के लिए लाचार किया।
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इन ईसाई ' सभ्य ' लोगों के लिए इन ' धर्मभ्रष्ट ' लोगों को ' सच्चा धर्म ' दिखाने का एकमेव मार्ग इन्हें दास बनाना था।
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वे कहते हैं, कि '' मुझे तो धर्म प्यारा है इसलिए पहला दु: ख मुझे यह है कि हिंदुस्तान धर्मभ्रष्ट होता जा रहा है।
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वे सब बाहर एक पोस्टर है कि अर्नोल्ड एक धर्मभ्रष्ट आभा देता है और उसे एक पंथ के नेता की तरह लग रही के साथ चला गया है.
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लेकिन जो राजा किसी की चाबी से अपनी खोपड़ी भर ले और तलवार के बल से जुल्म करके खुदा के वहाँ खुश होना चाहे तो धर्मभ्रष्ट कहा जाएगा।
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धर्मविहीन मनुष्य धर्मभ्रष्ट होकर गुरु, वृद्ध, सिद्ध, ऋषि और पूज्यों का अपमान करके अहित साधन करते हैं और अन्त में उन गुरुआें के अभिशाप से भस्म हो जाते हैं।