अब मुझे स्वामी जीने जनता को संबोधित करने को कहा तो मै अपने पहले भाषण में कहा कि मै धर्म नहीं बदल रहा हूँ-धर्म मानव मात्र के लिये एक ही है धर्म बदलना.
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अस्पृश्य को क्यों विवश किया जाए कि वह मृत पशुओं को उठाए, सड़ा-गला मांस खाए और घर-घर जाकर अपने भोजन के लिए गिड़गिड़ाए? हिन्दुओं को क्या घाटा होता है, यदि वह इन कामों को न करें? हिन्दू को क्यों आपत्ति करनी चाहिए, यदि अस्पृश्य अपना धर्म बदलना चाहता है?
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मैं उनके धर्म का मान करता हूँ क्योंकि अगर सोचोगे कि हर वस्तु में वही परमात्मा है तो कोई तुमसे भिन्न नहीं, तो मैं उनके विरुद्ध कैसे कुछ कह या कर सकता हूँ? लेकिन यहाँ के कैथोलिक और एवान्जेलिक लोग हमारे विरुद्ध प्रचार करते हैं कि हम बच्चों का धर्म बदलना चाहते हैं. ”
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हमने तो नही कहा? पर इमाम बुखारी भी हमें ठीक नही लगते, चर्च गिराने वाले भी ठीक नही लगते, पर अंकल ये बतायो की क्या समाज सेवा से पहले किसी का धर्म बदलना जरूरी है, किसी भूखे को आप तभी खाना खिलोयेगे जब वो ईसाई बनेगा? हम तो हर ग़लत बात को ग़लत कहते है, हमने तो नही कहा की मोदी की जे जे कार करो किसी बेचारे निर्दोष इंसान को परेशां करो.