मशीनों के सहारे हमारा जीवन चल रहा है और प्रकृति से दूर होकर नगरीय जीवन शैली के दबाव में आज हम भीड़ में भी तनहा हैं.
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गीत चतुर्वेदी ने कस्बाई जीवन से लेकर नगरीय जीवन और उसमें समायी वैश्विक समस्याओं तक के अनुभव के विस्तार को अपनी कविता में संवेदात्मक जगह दी है।
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हमने अपने नगरीय जीवन में भौतिक संसाधनों को इतना अधिक एकत्र कर लिया है कि हमारे घरों में खुद के रहने के लिए जगह कम हो गई है।
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बिलकुल सही कहा आपने, गौरेया की आवाज जो कभी सुबह के समय में मनपसद आवाज होती थी वह नगरीय जीवन में न जाने कहां खो गई है.
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नगरीय जीवन में ग्रामीण जीवन से अधिक जटिलता होती है, हमें तो सूची न दी जाये तो मॉल से सौंफ की जगह जीरा व जीरा की जगह अजवायन घर आ जायेगी।
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अक्सर नहीं आता पानी / गुल रहती है बिजली '-ये गांव से लेकर नगरीय जीवन के रोजमर्रा के दुख हैं जो बेहद सघन अनुभूतियों के साथ व्यक्त हुए हैं।
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मुंबई जैसे शहर को केन्द्र में रखकर निस्सीम महानगरीय कठिनाइयों, नगरीय जीवन के संघर्षों और मनुष्य के अकेलेपन व पहचान के आधुनिक संकट को अपनी कविताओं में सदैव व्यक्त करते हैं ।
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दलित, स्त्री, मजदूर, किसान, ऋणग्रस्तता, रिश्वतखोरी, विधवाएँ, बेमेल विवाह, धार्मिक पाखण्ड, मानव मूल्यों की दरकन, जेनरेशन गैप, ग्रामीण जीवन की सहजता के मुकाबले नगरीय जीवन की स्वार्थ लोलुपता आदि ऐसे ही यक्षप्रश्न हैं।
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मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग ने प्रदेश में निवासरत जनजातियों की संस्कृति, उनके रहन-सहन पहनावे खेती-किसानी की पद्धति और उनके आध्यात्मिक लोक से नगरीय जीवन का परिचय कराने के उद्देश्य से की है।
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मैं सोचता हूं कि क्या कभी ये आपसी सहभागिता / ये सामाजिक गठबंधन की भावना / या आप इसे और जो भी नाम देना चाहें........ आज के नगरीय जीवन में संभव है.......??