बताया जाता है कि तत्कालीन समय में महंतों के दवाब में नगर पालिका की सीमा को श्यामपुर तक ले जाने की पूरी कोशिश हुई जिससे कि उनके द्वारा इन स्थानों में कब्जाई गई भूमि को नगर सीमा में लाया जा सके।
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इसके अलावा नगर सीमा में झील के चारों ओर होटल, कॉटेज, मोटल तथा अन्य प्रकार के कच्चे एवं पक्के निर्माण के लिए नक्शा, प्लान स्वीकृत करवाने के लिए पालिका से अनापत्ति प्रमाण पत्र निर्धारित शुल्क देकर लेना होगा।
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दूसरी बात में तर्क यह है कि यदि त्याग की पराकाष्ठा की ओर अग्रसित मुनि श्री नगर सीमा में समाज कल्याण या प्राणी मात्र के कल्याण की भावना से ही आते हैं तो क्या एक वस्त्र धारण उनकी भावना को आहत कर सकता है।
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बंगाली मंदिर रोड स्थित पुराना रोडवेज बस अड़्डा और हरिद्वार रोड स्थित भूखंड जिस पर नगर पालिका की ओर से विगत ४ ० वर्षों से कूड़ा-करकट डाला जाता है, को नगर सीमा में लाया गया और उसे महंतों की भूमि में तब्दील कर दिया गया।
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बेहतरीन जानकारी है, ठीक इसी तरह उज्जैन में भी भगवान महाकालेश्वर को यहाँ का राजा माना जाता है और शासन या सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य यहाँ रात्रि विश्राम नहीं करता, यदि करना भी पड़े तो नगर सीमा से बाहर स्थित विश्रामगृह में इसका इंतजाम किया जाता है…
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तथापि केरल परिमण्डल में ही इसी प्रकार के मामलों में जैसे श्री फरियमदूरभाष केन्द्र जो त्रिवेद्रम निगम की नगर सीमा के बाहर थे तथाकालामास्सरी और थ्रिपुनीथुरा केन्द्र जो इरनेकुलम को नगर सीमाओं से बाहरपड़ते थे, विभाग ने इन्हें क्रमशः त्रिवेद्रम से और इरनेकुलम दूरभाषजिलों का बहु-केन्द्र प्रणालियों में सम्मिलित कर लिया और अभिदाताओं सेप्रति दो मास १५० रु.
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नगर सीमा बाहर होते-होते बेबस नगरी में गहरी रूचि लेने वाले एक पत्रकार ने ऊँट से पूछा “ अरे ऊँट भाई! इन कुत्तो के साथ तुम क्यों भागे जा रहे हो? ” हांफते हुए ऊँट बोला “ दोहरा संकट है पत्रकार भाई! पकडे जाने पर मुझे ही सिद्ध करना होगा कि मैं कुत्ता नहीं हूँ।
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) औद्योगिक उपक्रम निम्नलिखित में स्थित न हो या स्थापित किए जाने काप्रस्ताव नहीं किया होः-क) जैसा कि भारत की जनगणना, १९८१ में निर्धारित किया गया, १० लाख से अधिकजनसंख्या वाले नगर की मानक शहरी सीमा के भीतर; याख) जैसा कि उक्त जनगणना में निर्धारित किया गया है, ५ लाख से अधिकजनसंख्या वाले एक नगर की नगर सीमा के भीतर.
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कू करती है आम्र कुंज से उसकी मीठी बोल उड़कर सिवान के आरपार तक नगर सीमा के द्वार तक हृदय-आनन्द रस में भिंगोती है कोयल किसी डाल पर बैठी प्रातःकाल के पूर्वी क्षितिज पर रंगोली खेलती सोनाली आभा-रंगी किरणों के रंगोत्सव देखकर अपनी कूक के स्वर बदल लेती है आनन्दातिरेक में मीठे गान सुनाती है कोकिला, कोयल, कलपाखी, इतनी काली होते हुए भी अपनी आवाज से दिशाओं में मधुरस घोलती है कितना मधुर मीठा मृदु मोहक बोलती है हमारी आत्मा के खालीपन को आनन्द-रस से भरती है कोकिला अलख सबेरे अपना मधुरस-तान-गान छेड़ती है।