जब महमूद ने नवासा शाह पर (सुखपाल का धर्मान्तरण के बाद का नाम) आक्रमण किया तो उतवी के अनुसार महमूद द्वारा धर्मान्तरण के जोद्गा का अभूतपूर्व प्रदर्शन हुआ।
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झुंझुनूं. कर्बला में दीने हक के लिए नवासा ए रसूल इमाम हुसैन के साथ जंग में शामिल हजरत अब्बास अलमबरदार की शहादत की याद में मंगलवार को अलम सद्दे निकाले जाएंगे।
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मेरे पिताजी का लड़का यानी मेरा भाई मेरा ही नवासा (दोहिता) हो गया और इस तरह मैं स्वयम् का ही दादा हो गया और स्वयम् का ही पोता बन गया...
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पीठ से निकली पसीने की बूँद सीधा मेरु दंड के नीचे पहुँच देह को लहरा देती है, अब नवासा उनका, त्यौहार उनका, समाज उनका एक तो भले आदमी ने न्योता दिया है और आप हैं की...
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मेरे पिताजी का लड़का यानी मेरा भाई मेरा ही नवासा (दोहिता) हो गया और इस तरह मैं स्वयं का ही दादा हो गया और स्वयं का ही पोता बन गया............ ” और तू कहता है कि तुझे फेमिली प्रॉब्लम है....
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नानू मेरा नवासा हैअभी वो तीन महीने सत्रह दिन कामुझे खूब पहचानता...देखते ही मुस्कराने लगता ॥रंग रूप मेरी बेटी पे गया...गुलज़ार साहब के साथ फोटो भी खिचवाया ॥उनकी गोदी में खेला ॥कवितायें जरुर लिखेगामेरा घर....सूना हो जाएगा...जब वो अपने घर जाएगा...
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नानू मेरा नवासा हैअभी वो तीन महीने सत्रह दिन कामुझे खूब पहचानता...देखते ही मुस्कराने लगता ॥रंग रूप मेरी बेटी पे गया...गुलज़ार साहब के साथ फोटो भी खिचवाया ॥उनकी गोदी में खेला ॥कवितायें जरुर लिखेगामेरा घर....सूना हो जाएगा...जब वो अपने घर जाएगा......
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परिस्थिति तो तब ख़राब हुई जबमेरे पिताजी को लड़का हुआ....मेरे पिताजी का लड़का यानी मेरा भाई मेराही नवासा हो गया और इस तरह मैं स्वयम का ही दादा हो गया और स्वयम का हीपोता बन गया और तू कहता है कि तुज्हे फेमिली प्रॉब्लम है ”
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पर्दा फर्ज है इन लोगो से पर्दा करना फर्ज है जैसे-अजनबी, दूर रहने वाला रिश्तेदार, कज़िन, देवर, पीर, कुफ्फार, मशरकीन, बुरी औरतें, इन लोगो से पर्दा करना फर्ज नहीं है जैसे-वालिद, दादा, चाचा, मामु, नाना, भाई, भतीजा, भांजा, पोता, नवासा, खुसर
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एडवर्ड ब्राउन: कर्बला में खूनी सहरा की याद जहां अल्लाह के रसूल का नवासा प्यास के मारे ज़मीन पर गिरा और जिसके चारों तरफ सगे सम्बन्धियों के लाशें थीं यह इस बात को समझने के लिए काफी है की दुश्मनों की दीवानगी अपने चरम सीमा पर थी, और यह सब से बड़ा ग़म (शोक) है जहाँ भावनाओं और आत्मा पर इस तरह नियंत्रण था की इमाम हुसैन को किसी भी प्रकार का दर्द, ख़तरा और किसी भी प्रिये की मौत ने उन के क़दम को नहीं डगमगाया!