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नव उपनिवेशवाद उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.प्रेमचंद का साहित्य आज की परिस्थितियों में यह संदेश दे रहा है कि नव उपनिवेशवाद और उसके देशी आधारों के जनविरोधी शासन को मजदूरों और किसानों के आंतरिक गुणों का विकास करके ही ध्वस्त किया जा सकता है और नये समाज और राष्ट्र निर्माण के अधूरे सपने को साकार किया जा सकता है.

32.प्रेमचंद का साहित्य आज की परिस्थितियों में यह संदेश दे रहा है कि नव उपनिवेशवाद और उसके देशी आधारों के जनविरोधी शासन को मजदूरों और किसानों के आंतरिक गुणों का विकास करके ही ध्वस्त किया जा सकता है और नये समाज और राष्ट्र निर्माण के अधूरे सपने को साकार किया जा सकता है.

33.उन्होंने साहित्य और कला के संबंधों की जरूरत पर बल दिया. डॉ. आशुतोष कुमार ने समकालीन संदर्भ में उपनिवेशवाद की उपस्थिति पर राय जाहिर करते हुए कहा कि आज नव उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष को विकसित करने की जरूरत है क्योंकि उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरोध का पूराना तरीका अब उतना कारगर नहीं रहा.

34.दरअसल, भूमंडलीकरण के दौर में कथित महाशक्तियों का फिर से पिछड़े गरीब मुल्कों से नया सम्पर्क स्थापित हो रहा है, और इसी दौर के ÷ बौद्धिक उत्पाद' के रूप में कई विचारक धर्म के सवालों से ऐतिहासिक संघर्षों की गुत्थियां सुलझाने के नाम पर उन्हें खंडित व तार तार कर रहे हैं जिससे उन्हें बगावत की प्रेरणा बनने से रोका जा सके और नव उपनिवेशवाद का बौद्धिक आधार तैयार किया जा सके।

35.संतोष भदौरिया ने गोष् ठी के आयोजन के उद्देश् य को स् पष् ट करते हुए कहा कि भूमंडलीकरण और चरम उपभोक् तावाद के दौर में जब हमारी स् मृतियां धूमिल हो रही हैं और नव उपनिवेशवाद के भँवर में आकर हम आर्थिक और सांस् कृतिक पराधीनता की ओर बढ़ रहे हैं, तब हमारे लिए राष् ट्रीय स् वाधीनता आंदोलन का पुन: स् मरण आवश् यक है क् योंकि वहां से प्रेरित होकर हम भारत का नवनिर्माण करने की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।

36.जिस तरह 1997 में “ संकट के बावजूद ” शीर्षक पुस्तक की भूमिका में मैनेजर पाण्डेय ने सोवियत संघ के विघटन से उपजे वैचारिक कुहासे और निराशा को छांटने की आलोचकीय पहल की वैसे ही उपर्युक्त दोनों पुस्तकों की भूमिकाएँ और माधवराव सप्रे पर उनका लेख ” नव उपनिवेशवाद, भूमंडलीकरण, निजीकरण, उदारीकरण के वर्तमान दौर में पुराने उपनिवेशवाद के खिलाफ़ चले मुक्ति संग्राम, उसकी जटिलताओं और उसकी वर्तमान प्रासंगिकता को रेखांकित कर प्रतिरोध संस्कृति कर्म का परिप्रेक्ष्य विकसित और समृद्ध करने का महत्त्वपूर्ण प्रयास है.

37.तभी तो उनकी सृजनात्मक, कहानियों में परंपरा, रूढ़ियाँ, रीति-रिवाज, जड़ता, विखण्डन, धर्म, संस्कृति, राजनीति, विचारधारा, मानव-मूल्य, नैतिकता, श्लील-अश्लील, सेक्स, यांत्रिकता, प्रोद्यौगिकी, सूचनाक्रांति, साइबर क्राइम, कार्पोरेट कल्चर, कार्पोरेट सोसाइटी, उपभोक्तावादी संस्कृति, माल संस्कृति, फैशन टेक्नालाजी, विज्ञापन की दुनिया, लिव-इन-रिलेशनशिप, समलैंगिक चित्रण, सेक्स का उन्मुक्त चित्रण, देह की संस्कृति, बाजारवाद, मीडिया-विमर्श, प्रेम का बदलता स्वरूप मास कल्चर, मास लिटरेचर, नक्सलवाद, आतंकवाद, साम्प्रादायिकता, वैयक्तिक पीड़ा, पानी की समस्या, किसान, आदिवासी विस्थापन की समस्या, प्रवासी-अप्रवासी बदलने की क्रियाएं, सम्वेदनाओं का होता क्षरण, बढ़ती महंगाई, नवसाम्राज्यवाद, नव उपनिवेशवाद इत्यादि मूलभूत समस्याओं पर पाठकों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।

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