| 31. | बाकी आयुर्वेद में ऐसी स्थितियों में अणुतैल का नस्य देेने को कहा गया है।
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| 32. | में पीसकर नस्य देने तथा आंखों में आजमाने से उन्माद, ग्रह तथा मिर्गी रोग
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| 33. | बमन, विरेचन, नस्य, स्वेदन, स्नेहन यह पंचकर्म कहलाते हैं ।
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| 34. | नस्य को गले तथा सिर के समस्त रोगों की उत्तम चिकित्सा कहा गया है।
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| 35. | साथ-साथ हल्दी के धुएँ का नस्य लेने से सर्दी और जुकाम तुरंत मिटते हैं।
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| 36. | नस्य के अयोग्य रोगी-अत्यंत कृश व्यक्ति, सुकुमार रोगी, मनोविकार, अति निद्रा, सर्पदंश आदि।
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| 37. | नस्य को गले तथा सिर के समस्त रोगों की उत्तम चिकित्सा कहा गया है।
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| 38. | परन्तु विरेचन के लिए फल ही उत्तम है, नस्त: प्रच्छेदन= शिरोविरोचना, नस्य लेकर छींक लेना.
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| 39. | षड बिन्दु का नस्य दो दो बुन्दे दिन मे कम से कम एक बार ।
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| 40. | मूत्र में पीसकर, नस्य देने तथा आंखों में डालने से पागलपन का रोग दूर हो
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