लेकिन जहां तक नाटक और रंगमंच की बात है तो पिछली शताब्दी के आख़री दशक में पहली बार जिस लाहौर नहीं देख्या औ जन्मया ही नहीं जैसा नाटक हमारे सामने आया और सही माइनों में यही अकेली नाट्य रचना है जो हिंदी नाटक और रंगमंच के इतिहास में किसी सचमुच की ऐतिहासिक घटना का पुरावलोकन करती है।