फैज़ साहब तो मेरी जानकारी के अनुसार पाकिस्तान चले गए थे जबकि साहिर साहब हमारे देश के कवि थे हम तो फैज़ को भारतीय कवि नहीं कह सकते आप चाहें तो कहें हमें न तो कोई आपत्ति है न ही हम इस विवाद में पर कर आप को फिर से नाराज़ करना चाहते हैं.
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उस वक्त या तो मैं जवाब देना ही पंसद नहीं करूंगा, अगर लाचारी से कुछ कहना ही पड़ा तो बिना आंखें खोले यही कहूंगा-जाइए-जाइए महाशय, आधी उम्र जेल में गुज़ारने वाले तुम इस शैया-सुख को क्या पहचानो? अरे जो सुख 'राज में न पाट में, सो सुख आवे खाट में।' लेकिन आप जानते हैं कि नेहरूजी को नाराज़ करना आजकल आसान है, पर अपनी लड़की के भावी लड़के की होने वाली नानी को नाराज़ करना हंसी-खेल नहीं, क्योंकि एक तो नेहरूजी आसानी से रूठने वाले नहीं और रूठे भी तो अधिक-से-अधिक एक अंतर्राष्ट्रीय (इंटरनेशनल) स्पीच दे देंगे।
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उस वक्त या तो मैं जवाब देना ही पंसद नहीं करूंगा, अगर लाचारी से कुछ कहना ही पड़ा तो बिना आंखें खोले यही कहूंगा-जाइए-जाइए महाशय, आधी उम्र जेल में गुज़ारने वाले तुम इस शैया-सुख को क्या पहचानो? अरे जो सुख 'राज में न पाट में, सो सुख आवे खाट में।' लेकिन आप जानते हैं कि नेहरूजी को नाराज़ करना आजकल आसान है, पर अपनी लड़की के भावी लड़के की होने वाली नानी को नाराज़ करना हंसी-खेल नहीं, क्योंकि एक तो नेहरूजी आसानी से रूठने वाले नहीं और रूठे भी तो अधिक-से-अधिक एक अंतर्राष्ट्रीय (इंटरनेशनल) स्पीच दे देंगे।