अंतर केवल इतना है कि हिंदू पुराणों के अनुसार जहाँ हमारे पूर्वजों के निमित्त ऐसे विशेष लोक निर्मित हैं जहाँ के सुंदर सरोवरों और मनोहर नदियों में वह देव-पुत्रों की तरह अपनी केलि-क्रीड़ा में निमग्न रहते हैं, वहीं अन्य देशों के पुरखे या तो पूरे साल निद्रादेवी की गोद में शयन करते हुए स्वप्न-लोक का विचरण करते हैं, और या उन आमंत्रणों की प्रतीक्षा में रत रहते हैं जिन्हें उनके वंशजों द्वारा साल के किसी ख़ास मौके पर औपचारिक रूप से उनको प्रेषित किया जाता है।