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निर्जीवता उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.और मै आस्तित्व हीन हो गयी,,,, तुम चिर निंद्रा और मै निर्जीवता में खो गयी,,,, एक प्रश्न के साथ,,, आखिर क्यों मरती है केवल मांये,,,,, आखिर क्यों लांघी तुमने वो सीमाए अहो अभावता तुझको...

32.सैकड़ों आदमी चलते-फिरते दृष्टि में आते थे, जो अदालत-कचहरी और थाना-पुलिस की बातें कर रहे थे, उनके मुखों से चिंता, निर्जीवता और उदासी प्रदर्शित होती थी और वे सब सांसारिक चिंताओं से व्यथित मालूम होते थे।

33.उन्नति से हमारा तात्पर्य उस स्थिति से है, जिससे हममें दृढ़ता और कर्म-षक्ति उत्पन्न हो, जिससे हमें अपनी दुःखावस्था की अनुभूति हो, हम देखें कि किन अंतर्बाहा्र कारणों से हम इस निर्जीवता और ह्रास की अवस्था को पहंुच गए, और उन्हें दूर करने की कोषिष करें।

34.सैली का घर क़रीब ही था, माइकेल पैरों को घसीटता हुआ चलता रहा, मन की अजीब हालत थी, शरीर में कोई ताक़त नहीं बची थी, मन भी अपनी उन्हीं रिश्तों के लिए छटपटाता था, मनुहार करता था, और उनकी निर्जीवता पर जूझते-जूझते थक गया था।

35.यद्यपि मैंने आज शाम को शैय्या पर अंतिम विश्राम करते हुए उनके चेहरे को देखा जिस पर मृत् यु की निर्जीवता थी तब भी मैं पूरी तरह नहीं समझ सकता कि उस अद्भुत मस्तिष् क ने अपने महान विचारों से दोनों दुनिया के सर्वहारा आन् दोलन को प्रेरित करना बंद कर दिया।

36.और हर साल फिर से ज़िंदा हो जाता है साल-ओ-साल चल रहे इस सिलसिले में रावण और ख़ूंखार बनकर लौट आता है और मर्यादा पुरूषोत्तम राम तो वहीं के वहीं रह गए हैं, बस मंदिरों में एक मूरत बनकर, उतने बेजान जितनी निर्जीवता एक पत्थर में होती है आज राम का वजूद नहीं है मगर ये सच है कि आज हर दिल में एक रावण ज़िंदा है...

37.ना जाने कहाँ गया, निश्छलता का भावः, अपने पन की गहराई, हर्षित होती आंखें देख घटाएं सावन की शिखर छुते पेड़ देख अभिमान से भर भर उठते ह्रदय की अन्तः खुशी निर्जीवता को भी अपनत्व का मधु घोलकर समाहित कर देती थी संजीवता के आभास मैं अनजान के लिए आंखों से आंसुओ का दान दर्द को दर्द की पहचान ना जाने कहाँ खो गई???

38.ना जाने कहाँ गया, निश्छलता का भावः, अपने पन की गहराई, हर्षित होती आंखें देख घटाएं सावन की शिखर छुते पेड़ देख अभिमान से भर भर उठते ह्रदय की अन्तः खुशी निर्जीवता को भी अपनत्व का मधु घोलकर समाहित कर देती थी संजीवता के आभास मैं अनजान के लिए आंखों से आंसुओ का दान दर्द को दर्द की पहचान ना जाने कहाँ खो गई???

39.क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी चंचल नहीं करती? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर! तेरे पितर भी नतमस्तक हैं इस नपुंसकत्व पर! यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो, तो उठकर माता के दूध की लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा, उसके आँसुओं की एक-एक बूँद की सौगन्ध ले, उसका बेड़ा पार कर और बोल मुक्त कण्ठ से-वंदेमातरम्।

40.तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशुलधारिणी, तेरी सिंघ्वासिनी, तेरी शस्य श्याम्लान्चला आज फूट फूटकर रो रही है, क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी विचलित नहीं करती? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर! तेरे पित्तर भी शर्मसार हैं इस नंपुसत्व पर! यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो तो उठकर माता कि दूध कि लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा, उसके आँसुओं कि एक एक बूंद की सौगंध ले! उसका बेडा पार कर, और बोल मुक्त कंठ से.... वन्दे मातरम!!!

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