प्रभा खेतान की आत्मकथा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू आत्मकथा लेखिका के रूप में उनकी निर्वैयक्तिकता-स्रष्टा प्रभा खेतान से भोक्ता प्रभा खेतान की वह दूरी-है, जिसके नाते औरों की तरह अपने भोक्ता रूप को वे एक निर्मम तटस्थता से देख सकीं, उस पर आलोचनात्मक टिप्पणियां कर सकीं।
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इस कविता की निर्वैयक्तिकता की ओर ध्यान देते हुए डॉ. रमेश मिश्र ने लिखा है कि, “ सरोज स्मृति में समाज की अव्यवस्था ओर उसके फलस्वरूप जीवन की घुटन का भी ऐसा स्वरूप व्यक्त किया गया है जो मानवीय धरातल पर निराला की आवाज सरोज के प्रति न होकर जीवन चेतना का वह स्वर है जो मानवीयता के नाते लाजिमी और अनुकूल है ।
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मुझे लगता है कि भारतभूषण अग्रवाल कविता पुरस्कार का प्राप्तकर्ता प्रत्येक कवि-कवयित्री उसे एक नैतिक-सर्जनात्मक उत्तरदायित्व की तरह लेता है-पहले तो वह चाहता है कि वह उसे मात्र गुणवत्ता के आधार पर निष्पक्ष निर्वैयक्तिकता से मिले, फिर यह कि यदि वह गुणवत्ता असली है तो वह अपने आगामी कृतित्व और शायद अपने व्यक्तित्व में भी उसी गुणवत्ता को यदि विकसित न कर पाए तो भी उस स्तर पर बनाए रखे.
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मुझे लगता है कि भारतभूषण अग्रवाल कविता पुरस् कार का प्राप् तकर्ता प्रत् येक कवि-कवयित्री उसे एक नैतिक-सर्जनात् मक उत् तरदायित् व की तरह लेता है-पहले तो वह चाहता है कि वह उसे मात्र गुणवत् ता के आधार पर निष् पक्ष निर्वैयक्तिकता से मिले, फिर यह कि यदि वह गुणवत् ता असली है तो वह अपने आगामी कृतित् व और शायद अपने व् यक्तित् व में भी उसी गुणवत् ता को यदि विकसित न कर पाए तो भी उस स् तर पर बनाए रखे.
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उपन्यासकार भूमिका में अपने बंदी जीवन, क्रांतिकारिता का उल्लेख करता है, उपन्यास को एक विराट चित्र, घनीभूत वेदना की एक रात में देखे हुये विजन को शब्दबद्ध करने का प्रयास बतलाते हैं, मानता है उनको जानने वाला पाठक इसमें लेखक के जीवन, देशाटन के सूत्र पायेगा लेकिन पाठक को यह भी मनवा देना चाहता है इलियट के कथनानुसार मैं बहुत बड़ा आर्टिस्ट हो चुका हॅूं, (अज्ञेय की प्रसिद्ध निर्वैयक्तिकता) लेकिन दो पंक्ति बाद ही स्वीकारता है शेखर में मेरापन कुछ अधिक है इलियट का आदर्श मुझसे निभ नहीं सका है.