यह एक नैतिक आचार विचार और धर्मसंकट का मामला है-मुझे ऐसे समाज से व्यक्तिगत कोई वितृष्णा नहीं है मगर मैं जरूर मनुष्य की भावी दुनिया की पूर्व पीठिका तय करने वाले निर्देशक तत्वों से इन प्रश्नों को पूछना चाहूँगा? 1-क्या नारी प्रजनन कार्य से मुक्त होना चाहती है?
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6. यही कारण है कि मंच ऐसे सभी मुद्दों को जनता के सामने रखता है जिन पर बहस हो, गैर-राष्ट्रवादी व देशद्रोही विचार वालों को बहिष्कृत किया जा सके, राजनीति व समाज में नैतिक आचार संहिता को बल मिले व अंतिम तौर पर भारत राष्ट्र का गौरव बढ़े.
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भारत परस्पर विरोधाभासी मूल्यों का देश बन गया है-जायदातर लोग कन्फ्यूज्ड रहते हैं! कोई भी समाज अपनी एक अलिखित नैतिक आचार संहिता बना कर तदनुसार आचरण करता है-करना भी चाहिए! कुश इन दिनों फुरसत में लगते हैं विस्तार से अपनी रचनात्मक ऊर्जा का उन्होंने (सद) उपयोग किया है!
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वे कई तरीके है, नैतिक आचार अमेरिकन केमिकल सोसायटी के कोड में उल्लिखित मानकों का उल्लंघन किया है, 3. अफसोस की बात है, चकमा अखबार स्तंभकारों द्वारा किया गया जारी रखा है, लगता है कि टैंक, “असंतुष्ट वैज्ञानिकों”, और कई सीनेटरों और कांग्रेस के प्रतिनिधियों, जो विचारों का उपयोग रॉबिन्सन लेख से इस दिन के लिए.
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कभी-कभी यह दावा किया जाता है कि नैतिकता सम्बंधी ग्रेशम का कानून लागू तो होता है मगर अच्छे नैतिक आचार को बुरा नैतिक आचार प्रचलन से बाहर कर देता है. यह दावा किया जाता है कि एक प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल में लोग उन्हीं कंपनियों को जीवित समझते हैं जिनकी भूमिका अधिकतम लाभ अर्जित करने की रहती है.
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कभी-कभी यह दावा किया जाता है कि नैतिकता सम्बंधी ग्रेशम का कानून लागू तो होता है मगर अच्छे नैतिक आचार को बुरा नैतिक आचार प्रचलन से बाहर कर देता है. यह दावा किया जाता है कि एक प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल में लोग उन्हीं कंपनियों को जीवित समझते हैं जिनकी भूमिका अधिकतम लाभ अर्जित करने की रहती है.
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कभी-कभी यह दावा किया जाता है कि नैतिकता सम्बंधी ग्रेशम का कानून लागू तो होता है मगर अच्छे नैतिक आचार को बुरा नैतिक आचार प्रचलन से बाहर कर देता है. यह दावा किया जाता है कि एक प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल में लोग उन्हीं कंपनियों को जीवित समझते हैं जिनकी भूमिका अधिकतम लाभ अर्जित करने की रहती है.
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कभी-कभी यह दावा किया जाता है कि नैतिकता सम्बंधी ग्रेशम का कानून लागू तो होता है मगर अच्छे नैतिक आचार को बुरा नैतिक आचार प्रचलन से बाहर कर देता है. यह दावा किया जाता है कि एक प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल में लोग उन्हीं कंपनियों को जीवित समझते हैं जिनकी भूमिका अधिकतम लाभ अर्जित करने की रहती है.
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१९४४ में गांधी को लिखे एक पत्र में जिन्ना ने खुद को मुसलमानों का एकमात्र नेता मानते हुए कुछ यूं कहा, ” हम १० करोड़ लोगों के एक मुकम्मिल राष्ट्र हैं, हम अपनी विशिष्ट संस्कृति, सभ्यता, भाषा, साहित्य, कला, भवन निर्माण कला, नाम, उपनाम, मूल्याँकन की समझ, अनुपात, कानून, नैतिक आचार संहिता, रिवाज, कलैण्डर, इतिहास, परंपरा, नज़रिया, महत्वकाँक्षाओं के चलते एक राष्ट्र हैं.
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किंतु उस पिं्रट अथवा इलेक् ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ क् या कार्रवाई हुई, जिसने पेड न् यूज का सुर अलाप कर अपने पेशे के प्रति तो विश् वासघात किया ही, संविधान प्रदत् त अभिव् यक् ति की स् वतंत्रता व नैतिक आचार संहिता के साथ भी मर्यादाहीन आचारण अपनाया, लिहाजा जरुरी है मीडिया को भी कानून के दायरे में लाकर आरोप तय होने पर दंडित करने के मानदण् ड निधार्रित हों।