पक्की मिट्टी वाली औरतें सिन्दूर, पाजेब का पर्याय बन लांघती हैं दहलीज गढ़ती हैं नये आकार में रोज़ खुद को चक्की पर पिसती बारीक और बारीक चुल्हे पर सिकती दोनों पहर भरती बर्तन भर पानी सी झरती ढुल जाती आखरी बून्द तक कई कई बार धुली चादर सी बिछ जाया करती बिस्तर पर।