रहस्य होते ही है खोजने के लिए और यह खोजी मन है किस कारण्… मेरा आपसे यह प्रश्न है कि-क्या जो आपकी नजरों से ओझल हो उसका अस्तित्व नहीं है…जो टापू आपने देखे नहीं वह इस जगत में है ही नहीं…अगर आप अपनी आँखें मुंद ले तो जगत की समस्त वस्तु मिट जाती हैं…??? मोहिन्दर जी, धन्यवाद आपकी सहमती ही परम शुभ को स्वीकार करती है…
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लेकिन प्रचंड कलिकाल के परम शुभ चिन्तक मन जी जो है उनके नौ रत्नों-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, राग, द्वेष एवं ईर्ष्या में से बलशाली नौरत्न लोभ जी अपने अति विचित्र जटिल फांस में शेष दस इन्द्रियों को इस तरह बांधते है कि चित्त, विवेक एवं बौद्धिक क्षमता तीनो गर्म गर्म श्वास की आहें ही भरते रह जाते है.
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दूसरी सबसे बड़ी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सत्पुरुष या सर्वतोभावेन भगवत् शरणागतों को नाचीज परिवार प्रधान रहने के अपेक्षा भगवत् प्राप्त होकर सीधे भगवत् प्रधान भगवद् शरण में रहने का परम शुभ अवसर प्राप्त होता है जो मानव जीवन का चरम और परम उद्देश्य है, बशर्ते कि सत्य-धर्म के संस्थापना के बेला में धर्म-संकट को समाप्त करने हेतु प्रारम्भ में कुछ दिन-माह-साल तक ही त्याग-परेशानी या कठिनाई हो सकती है ।