जैसे-जीव के अशुद्ध भावों का निमित्त पाकर लोक में सर्वत्र फैली हुई कार्मण वर्गणायें स्वयं ही अपने-अपने स्वभावनानुसार ज्ञानावरणादि पूर्वोक्त आठ कर्मस्थ परिणमन कर जाती है।
32.
कालद्रव्य-यह * द्रव्यों की वर्तना, परिणमन, क्रिया, परत्व (ज्येष्ठत्व) और अपरत्व (कनिष्ठत्व) के व्यवहार में सहायक (उदासीन-अप्रेरक निमित्त) होता है।
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उल्लेखनीय है कि वर्ष 2007-08 के अंत तक पावर ग्रिड 67, 000 किलोमीटर ट्रांशमिशन लाईन के साथ-साथ 111 सब स्टेशन का परिचालन कर रही है जिसकी कुल परिणमन क्षमता 73,000 मेगावाट से अधिक है।
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इसी तरह नामकर्म तथा गोत्रकर्म के उदय से भिन्न-भिन्न जाति की वर्गणायें स्वयं ही अनेक प्रकार के देव, नारकी, मनुष्य, तिर्यचों के शरीर के आकार रूप परिणमन कर जाती है।
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ऐसी स्थिति में व्यक्ति प्रतिकूल परिणमन होने पर खेद खिन्न नहीं होता परन्तु वस्तु के परिणमन स्वभाव में विश्वास होने से वह यह भी जानता है कि समय आने पर वस्तु में इच्छित परिवर्तन भी होंगे ही।
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ऐसी स्थिति में व्यक्ति प्रतिकूल परिणमन होने पर खेद खिन्न नहीं होता परन्तु वस्तु के परिणमन स्वभाव में विश्वास होने से वह यह भी जानता है कि समय आने पर वस्तु में इच्छित परिवर्तन भी होंगे ही।
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परन्तु उनके उपदेशों का जो लोकोत्तर पहलू है, वह है पदार्थ की अनन्त गुण सम्पन्नता, परिणमन (अवस्था परिवर्तन) की स्वतन्त्रता, पर द्रव्यों के कर्तृत्व का अभाव और प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति व सामर्थ्य की घोषणा।
38.
भाव-विकारों (जन्म, वृद्धि, स्थिरता, परिणमन, अपक्षय और विनाश) से शून्य, संसाररोग को हरने के निमित्त अद्वितीय औषध हैं, उन एक शिवजी को मैं प्रात: काल भजता हूँ॥ 3 ॥
39.
उक्त दुष्चक्र तब तक चलता रहेगा जब तक हम प्रत्येक द्रव्य के स्वाधीन परिणमन के स्वभाव को जानकार द्रढ़ता के साथ स्वीकार नहीं कर लेते हें और अपने आपको पर पदार्थों का अकर्ता नहीं मान लेते हें.
40.
सादृष्य के अयथार्थ सूत्र ही उसे जल के तल पर लहराते हुए तरंग हैं, चेतना के तरंग हैं, एक अमूर्त कार्य के वक्ररेखीय परिणमन हैं, जिन्हें हमारी चेतना या विचार-षक्ति दूर-दूर प्रक्षिप्त करती या भेजती है।