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परितोषण उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.इसने युक्तियुक्त संभाव्य बचाव के आधार पर अपने स्पष्टीकरण को सिद्ध नहीं किया है जबकि अभिलेख पर अभियोजन पक्ष आपराधिक प्रकरण सं0 61 / 2005-8-राज्य विरूद्ध मगाराम की स्पष्ट साक्ष्य है कि आरोपी पटवारी ने परिवादी मूलाराम से धनराशि नेखमबन्दी कार्य करवाने की एवज में प्राप्त की जो इसका वैध पारिश्रमिक नहीं होकर परितोषण है।

32.अभियुक्त ने उपर्युक्त परितोषण राशि की सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का स्पष्टीकरण ही नहीं दिया है, वहां अधिनियम की धारा 20 के अधीन यही उपधारित किया जायेगा कि इसने यह राशि हेतु या इनाम के रूप में प्राप्त की है, इस कारण इसके विरूद्ध उक्त अधिनियम की धारा 7 का अपराध सिद्ध होता है।

33.इस सम्बन्धमें अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत न्यायदृष्टान्त उत्तर प्रदेश राज्य बनाम डॉ. जी. के. घोष (पूर्वोक्त) में प्रतिपादित सिद्धान्त अनुसार यही कहा जा सकता है कि ज्योंही अभियुक्त हुकमसिंह ने अवैध परितोषण के रूप में अभियोगी छैलसिंह से दो हजार रूपये प्राप्त किये, उसने उसके बदले में उसके भाई देवीसिंह के पक्ष में म्यूटशन भरना शुरू किया।

34.जिला मजिस्ट्रेट ने आगाह किया है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 171 ख के मुताबिक निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान किसी भी व्यक्ति को उसके मताधिकार का प्रयोग करने के लिए नगद या अन्य सामग्री के रूप में परितोषण देने वाला या स्वीकार करने वाला एक वर्ष के कारावास या जुर्माने अथवा दोनों के व्दारा दंडित किया जा जा सकता है।

35.आपराधिक प्रकरण सं0 44 / 2004-40-राज्य विरूद्ध चौथाराम 31. अब इसी क्रम में यहाँ यह निर्धारित किया जा रहा है कि क्या अभियोजन कहानी अनुसार परिवादी रूपाराम द्वारा आरोपी पटवारी चौथाराम को दी गई राशि (400/-रू0) एक वैध पारिश्रमिक से भिन्न परितोषण है अथवा अभियुक्त द्वारा प्रस्तुत स्पष्टीकरण व साक्ष्य अनुसार उसे यह राशि विभिन्न नकलें जारी करने के लिये दी गई?

36.इसी प्रकार आन्ध्रप्रदेश राज्य विरूद्ध कोम्माराजू गोपाल कृष्ण आपराधिक प्रकरण सं0 76 / 2005 राज्य विरूद्ध चन्दाराम-43-मूर्ति-2001 एस. सी. सी. (क्रिमिनल) 1481 वाले मामला में भी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 व 106 के आधार पर यह कहा गया है कि यह सिद्ध करने का भार तो लोक सेवक (अभियुक्त) पर है कि उसके द्वारा प्राप्त की गई राशि अवैध परितोषण की राशि नहीं है।

37.माननीय उच्चतम न्यायालय ने धनवन्तराय बलवन्तराय देसाई विरूद्ध महाराष्ट्र-ए. आई. आर. 1964 एस. सी. 575 (चार सदस्यीय पीठ) वाले मामला में यह कहा है कि भले ही अभियुक्त को अपना स्पष्टीकरण/बचाव युक्तियुक्त सन्देह से परे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन परितोषण के रूप में आई अभियोजन पक्ष की साक्ष्य का खण्डन उसे समुचित प्रमाण से करना होता है, न कि सिर्फ संभाव्य साक्ष्य के आधार पर।

38.सम्पूर्ण टेªप कार्यवाही को गुप्त नहीं रखकर सार्वजनिक करते हुये कुल आठ व्यक्तियों ने भाग लिया था और वह कार्यवाही मात्र 40 मिनट में ही पूरी कर ली गई, इस कारण अभियुक्त के विरूद्ध अधिनियम की धारा 20 के अधीन यह उपधारणा धारित नहीं की जा सकती कि इसने प्राप्त परितोषण राशि इनाम या हेतु के रूप में प्राप्त की हो लेकिन हस्तगत प्रकरण के तथ्य उपर्युक्त मामला से सुभिन्न हैं।

39.उपर्युक्त चारों रसीदों के सम्बन्ध में अनुसन्धानकर्ता फाऊलाल ने अभियुक्त द्वारा दिए स्पष्टीकरण की आड़ में कोई अनुसन्धान ही नहीं किया है और अभियुक्त चन्दाराम ने टेªप के दौरान यह स्पष्टीकरण दे दिया कि उसने विवादित राशि जून माह की बकाया रसीदों पेटे प्राप्त की है, इस कारण उसके द्वारा प्रस्तुत स्पष्टीकरण युक्तियुक्त, संभाव्य एवं सत्य होने से यह नहीं कहा जा सकता कि इसके द्वारा प्राप्त धनराशि वैध पारिश्रमिक से भिन्न कोई अवैध परितोषण हो।

40.माननीय उच्चतम न्यायालय ने उपर्युक्त न्यायदृष्टान्तों में यह कहा है कि यदि टेªप सम्बन्धी मामला में घटनाक्रम, मानवीय आचरण एवं अन्य परिस्थितियों को देखते हुये तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि अभियुक्त ने वैध परितोषण से भिन्न राशि प्राप्त की और इस सम्बन्ध में उसने कोई समुचित स्पष्टीकरण नहीं दिया है तो उससे बरामद हुई राशि के आधार पर उसके विरूद्ध यह उपधारणा धारित की जा सकती है कि उसने ऐसी राशि अवैध परितोषण के रूप में प्राप्त की।

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