जो कुछ अब आप पढ़ने जा रहे हैं वह किसी परी लोक की कथा नहीं बल्कि एक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का नतीजा है, जो अगले दो साल में ही घर घर तक पहुंचने वाला है।
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उस समय के परी लोक को अपनी दृष्टि से आपको दिखाने का एक प्रयास मात्र है यह पुस्तक, जिसका एक-एक शब्द मैंने अनुभूति की स्याही में अपनी स्मृति की क़लम को डुबो-डुबोकर लिखने का प्रयास किया है.
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मेरी रजाई गरम-गरम इसके अंदर सोते हम यह मुझसे भी भारी है लेकिन मुझको प्यारी है ठंडक से लड़ जाती है सर्दी से दूर भगाती है मुझको अपनी गोद में लेकर परी लोक तक जाती है जब गर्मी आ जाती है ये बक्से में छिप जाती है
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मेरी रजाई गरम-गरम इसके अंदर सोते हम यह मुझसे भी भारी है लेकिन मुझको प्यारी है ठंडक से लड़ जाती है सर्दी से दूर भगाती है मुझको अपनी गोद में लेकर परी लोक तक जाती है जब गर्मी आ जाती है ये बक्से में छिप जाती है
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मेरी रजाई गरम-गरम इसके अंदर सोते हम यह मुझसे भी भारी है लेकिन मुझको प्यारी है ठंडक से लड़ जाती है सर्दी से दूर भगाती है मुझको अपनी गोद में लेकर परी लोक तक जाती है जब गर्मी आ जाती है ये बक्से में छिप जाती है...
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मेरी रजाई गरम-गरम इसके अंदर सोते हम यह मुझसे भी भारी है लेकिन मुझको प्यारी है ठंडक से लड़ जाती है सर्दी से दूर भगाती है मुझको अपनी गोद में लेकर परी लोक तक जाती है जब गर्मी आ जाती है ये बक्से में छिप जाती है
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किशोरावस्था में देखे एक स्वप्न पर आधारित थी, एक रचना जो बरसों पहले लिखी गयी थी, दैवीय शक्ति के आगे बैठा हुआ, अपने लिए एक परी लोक की अप्सरा की मांग की थी, माँ से मैंने....मृगतृष्णा सी यह रचना, मानवीय किशोरावस्था की कमजोरी और दमित इच्छाओं को इंगित करती है....