सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब के 300 वें प्रकाशोत्सव के मौके पर यहां मनाए जाने वाले विशेष कार्यक्रम गुरु-ता गद्दी (गुरु का स्थान) में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सहित देश भर से पांच लाख से अधिक सिख श्रध्दालुओं के पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है।
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लेकिन तत्क्षण यह दुश्चिंता भी पैदा हुई, अगर इस पवित्र धर्मग्रंथ को ले जाकर किसी ने रद्दी वाले को बेच दिया, कचरे में डाल दिया अथवा फाड़ कर फैंक दिया तो? फिर जो दंगे होंगे उसके लिये कौन जिम्मेदार होगा? वैसे भी भारत में ज्यादातर धर्मग्रंथ पढ़ने के लिए नहीं बल्कि दंगे कराने के ही काम आते है।
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लेकिन किसी के पास यह सोचने का वक्त नहीं है कि मरने वाले कौन थे या उनका कसूर क्या था? इस्लाम के पैगंबर और पवित्र धर्मग्रंथ के नाम पर फ़साद बरपा करना आसान है लेकिन इन मुद्दों का ठोस जवाब खोजना या सकारात्मक रूप से जवाब देना मुश्किल … इन सब बातों के बीच कश्मीर के एक मुफ्ती के बयान का भी जिक्र करना चाहूंगा.
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लेखिका तस्लीमा नसरीन का अपनी विभिन्न किताबों और लेखों के जरिए पवित्र धर्मग्रंथ कुरान, नबी (स.) की हदीस और इस्लामी शरीयत के विभिन्न विधि विधानों के प्रति अवमानना मूलक कटाक्ष लगातार जारी हैं और उसके ऐसे धर्मद्रोही आचरण के खिलाफ देश के प्रतिनिधि, सभी धार्मिक महाल से जबर्दस्त प्रतिवाद के बावजूद सरकार ने इस मामले में कमजोर कानून का आश्रय लेकर रहस्यजनक तरीके से निस्क्रियता की राह ही अपनायी.